विलुप्त होती परंपरा को दर्शाता भीमताल में बना ‘बखई का ढांचा’

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पहाड़ में घर पारंपरिक शैली के बनाए जाते रहे हैं. इन घरों के निर्माण में पत्थरों और लकड़ी का इस्तेमाल होता आया है. इन घरों की छतें पाथर की होती हैं, साथ ही गोठ, चाक और पटांगण में ओखली भी देखने को मिल जाती है. भीमताल नगर परिषद की तरफ से इसी तरह की बखई की एक बनावट तैयार की गई है. इसे बनाने का मुख्य मकसद लोगों, युवाओं और पर्यटकों को पहाड़ के इस विलुप्त होते पारंपरिक घरों के बारे में दिखाना है.

वैसे तो वर्षों से पहाड़ में इसी तरह से घर बनाए जाते रहे हैं. हालांकि आज के समय में पहाड़ के इन पारंपरिक घरों की जगह पर भी अब ईट, सीमेंट और सरिये घर ही देखने को मिलते हैं. भीमताल नगर परिषद के ईओ विजय बिष्ट का कहना है कि हमारी पारंपरिक शैली विलुप्त होती जा रही है. आज की युवा पीड़ी जब पहाड़ की ओर जाती है तो वहां भी ईट, सीमेंट से बने मकान ही देखती है.

पहाड़ के विलुप्त होते पहाड़ और यहां की संस्कृति से पर्यटकों और युवाओं को अवगत कराने और जानकारी देने के लिए ही बखई के ढांचे का निर्माण किया गया है. इसमें कुछ पुतले भी देखने को मिल जाएंगे जो पहाड़ की छोटी और प्यारी सी जिंदगी दर्शा रहे हैं. हालांकि इसमें कोई भी युवा पीड़ी का पुतला नहीं दिखाई दे रहा है जो पहाड़ से होने वाले पलायन के दर्द को झलकाता है.

भीमताल के मल्लीताल तिराहे में बना यह पहाड़ी घर का डमी जहां एक तरफ पर्यटकों और लोगों को आकर्षित कर रहा है वहीं पहाड़ के विलुप्त होते हुए पारंपरिक घरों के दर्द को भी बयां कर रहा है.

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