पहाड़ की सुंदर लड़की फ्योली रौतेली को इंद्र देव ने मरने के बाद दिया यह वरदान…तब से घर-घर पूजा जाने लगा फ्योली का फूल…

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फ्योली या प्योलि कहे जाने वाले इस सुंदर फूल को उत्तराखंड में सबसे खास फूलों में जाना जाता है। सालों से हमारे राज्य में फूलदेई पर इस फूल को बच्चों के द्वारा खेतों से लाया जाता है,लेकिन क्या आप जानते हैं कि बसंत ऋतु में खिलने वाले इस फूल की भी अपनी अलग कहानी है!

दरअसल प्योली पुष्प के साथ एक लोकप्रिय कहानी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि सोरिकोट नाम के एक गांव में एक बहुत ही सुंदर लड़की थी और इस लड़की का नाम फ्योली रौतेली था। इस लड़की की सुंदरता की बातें उन दिनों अक्सर गांव में हुआ करती थीं। वहीं अपने पिता की इकलौती संतान होने के कारण फ्योली को बड़े ही प्रेम और दुलार से पाला गया था।

प्योली बड़ी ही सुंदर लंबे बाल और आकर्षक नयन नक्श की पहाड़ी लड़की थी। एक रोज जब सुबह उसके पिता पूजा पाठ में व्यस्त थे तब फ्योली उठी और अपने काले लम्बे बाल बनाकर पानी भरने के लिए गागर उठाकर सहेलियों के साथ निकल गई। लेकिन पानी भरने के बाद के बाद जब सभी सहेलियां अपने अपने घरों को लौट गई तो फ्योली वहीं हर बार की तरह नहाने के लिए रुक गई।

जब फ्योली ने जल भरने के लिए जैसे पानी में गगरी डाली तो उसे पानी में किसी की परछाई दिखी। परछाई कौन है ये देखने के लिए उसने मुड़कर ऊपर पेड़ की तरफ अपनी नजर घुमाई तो देखा कि एक नौजवान पेड़ में बैठकर फूलों की माला बना रहा है। अचानक दोनों ने एक दूसरे को देखा और ऐसे में फ्योली की आंखें झुक गई और उसके गालों पर लालिमा सी आ गई। इस दौरान युवक पेड़ से उतरा और फ्योली के पास जाकर बैठ गया।

युवक ने अपना परिचय देते हुए बताया कि ” मेरा नाम भुपू रावत है ” उसने फ्योली से कहा कि क्या वह उसे जानती है? तब फ्योली ने कहा कि तुम्हारे पिता की नजर उनके गांव पर है और उसने भूपू से उसके गांव में होने का कारण पूछा जिस पर भूपु ने उसे मित्रता और प्रेम की आस के चलते उसका वहां होना बताया। जिसके बाद भुपु ने बांसुरी निकाली और उसका मन मोहने के लिए बासुरी बजाने लगा। बांसुरी बजते ही फ्योली मंत्रमुग्ध होकर बांसुरी की धुन में खो गई। जिसके बाद भुपु ने उसे अपने हाथों बनाई फूलों की माला पहना दी। फ्योली के बालों में फूल सजाते हुए दोनों ने जन्मों-जन्मों तक साथ रहने की कसमें खा ली।

सूर्य ढलने पर फ्योली को आभास हुआ कि पूरा दिन निकल चुका है और वह अब तक घर नहीं पहुंची है। इसी डर से वह घर की ओर भागी जहां उसके पिता गुस्से से लाल होकर उसका इंतज़ार कर रहे थे। घर पहुंचने पर फ्योली के गले और बालों में फूल देखकर पिता का गुस्सा और भी बढ़ गया। देर से आने की वजह बताने के दौरान उसने भुपू से मिलने की बात बताई। इसपर पिता ने उसे भूपु से कभी नहीं मिलने की हिदायत दी, लेकिन फ्योली ने कहा कि वह केवल भूपु से ही शादी करेगी।

यह सुनकर नाराज पिता ने फ्योली को जोर का धक्का दिया, जिससे फ्योली चोट खाकर जमीन पर गिर गई। नाराज पिता ने जब फ्योली को उठाया, तब तक फ्योली के प्राण जा चुके थे। उसे मरा हुआ पाकर पिता को बहुत दुःख हुआ। यहां पिता उसकी मौत पर आंसू बहा रहे थे तो वहीं फ्योली तब तक इंद्रलोक जा चुकी थी। इंद्र ने उसे वरदान दिया कि वह पूजी जाएगी। मरने के बाद फ्योली को जहां दफनाया गया, वहीं कुछ समय बाद वहां एक सुंदर पीला फूल खिला, जिसे फ्योली की याद में उसी के नाम से फ्योली कहा जाने लगा है। कुछ लोगों का मानना है कि उसी की याद में फूलदेई त्यौहार भी मनाया जाता है। वही अब उत्तराखंड में इस लोकगाथा को सुनकर इस फूल की कई स्थानों पर पूजा भी की जाने लगी है।

(फोटो-साभार प्रवीण सजवाण)

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