चंद्रयान-3 ने बुधवार शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा के साउथ पोल पर सफलता पूर्वक लैंडिंग कर ली है। चंद्रयान-3 का लैंडर मॉड्यूल (एलएम) चंद्रमा की सतह पर सफ़ल लैंडिंग के साथ ही भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। सिर्फ भारतवर्ष ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया इस ऐतिहासिक पल का टकटकी लगाए इंतजार करती रही।
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 के सफलता पूर्वक उतरने को लेकर देश भर में गर्व और रोमांच का माहौल रहा। इस सफलता के साथ ही भारत ने एक इतिहास रच दिया है। भारत दुनिया का पहला देश बन गया है जिसने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चन्द्रयान-3 को उतारने में सफलता प्राप्त की है।
चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव वह हिस्सा है जो विज्ञान में रुचि रखने वालों के लिए हमेशा से रहस्य रहा है। दक्षिणी ध्रुव पर वह जगह है जहां पर कुछ हिस्सों में एकदम अंधेरा है तो कुछ पर रोशनी नजर आती है। इसके करीब धूप-पानी दोनों है। कुछ हिस्सों में स्थाई रूप से छाया के साथ बर्फ जमा होने की बातें भी सामने आई है।
अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान नासा का दावा है कि, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के कुछ गड्ढों पर तो अरबों वर्षों से सूरज की रोशनी नहीं पहुंची है। इन गड्ढों वाली जगह का तापमान -203 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है।
इसरो चीफ ने इससे पहले क्या कहा था
इसरो चीफ एस. सोमनाथ ने मीडिया को ब्रीफ करते हुए कहा था कि ” इस बात की संभावना बहुत कम है कि चंद्रयान-3 अपने निर्धारित तारीख और समय 23 अगस्त, शाम 6:04 बजे चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग से चूक जाए। उन्होंने दावा किया था कि चंद्रयान-2 के साथ जो गलत हुआ, उसे ध्यान में रखते हुए चंद्रयान-3 को फेल-सेफ मैनर में विकसित किया गया है। उन्होंने कहा था कि भले ही चंद्रयान-3 के सारे सेंसर फेल हो जाएं, दोनों इंजन बंद हो जाएं, विक्रम लैंडिंग कर लेगा। “
इसरो के वैज्ञानिकों ने मिशन से भी काफी कुछ सीखा
इसरो के प्रमुख एस. सोमनाथ कहते हैं कि 2019 का मिशन चंद्रयान-2 आंशिक सफल था, लेकिन इससे मिले अनुभव इसरो के चंद्रमा पर लैंडर उतारने के लिए नए प्रयास में काफी उपयोगी साबित हुए। इसके तहत चंद्रयान-3 में कई बदलाव किए गए। चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए। एल्गोरिदम को बेहतर किया गया। जिन वजहों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह पर नहीं उतर पाया था, उन पर फोकस किया गया।
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