उत्तराखंड में मुलायम को एक काले अध्याय के रचयिता के रूप में किया जाता है याद, लोगों के मन में आज भी है नफरत…

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उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का निधन हो चुका है। उनके निधन से राजनीतिक जगत में शोक की लहर है, लेकिन उत्तराखंड राज्य के लोग आज भी मुलायम सिंह यादव को पसंद नहीं करते हैं। क्योंकि वह कभी नहीं चाहते थे कि उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड अलग हो और जिस तरह उन्होंने उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों पर बर्बरता की। आज भी उनकी इस क्रूरता को नफरत की दृष्टि से ही देखा जाता है।

संयुक्त प्रदेश के दौरान उनके सीएम रहते हुए ही आज से 27 साल पहले रामपुर तिराहा कांड हुआ था। राज्य आंदोलन के दौरान उस काली रात को आज भी पहाड़ लोेग नहीं भूले हैं।

1994 में जब मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे लोगों के साथ ऐसी घटना हुई जो कि प्रदेश के लोगों के लिए काला अध्याय बनकर रह गया।

पृथक राज्य की मांग को लेकर दिल्ली तक ले जाने के लिए 1 अक्टूबर को पहाड़ी इलाकों से 24 बसों में सवार होकर कुछ राज्य आंदोलनकारी दिल्ली के लिए रवाना हुए। पहले इनको रुड़की के नारसन बॉर्डर पर रोका गया, लेकिन फिर भी लोग अपने हकों के लिए आगे बढ़े।

1 अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर दोलनकारियों और पुलिस में कहासुनी हुई कि तभी अचानक नारेबाजी और पथराव शुरू हो गया। इस पथराव में तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह घायल हो गए। इसके बाद यूपी पुलिस ने क्रूरता से लाठीचार्ज किया और करीब ढाई सौ आंदोलनकारियों को हिरासत में ले लिया गया। इसी झड़प के बीच कथित तौर पर पुलिस पर महिलाओं के साथ छेड़खानी और रेप के भी आरोप लगे, जिनमें बाद में कई सालों तक मुकदमा भी चला।

निहत्थे लोगों पर सीएम के आदेश पर पुलिस ने चलाई थी गोलियां

1 अक्टूबर 1994 को देर रात तीन बजे के करीब 40 बसों से आंदोलनकारी रामपुर तिराहे पर पहुंचे तो फिर झड़प हुई। 2 अक्टूबर 1994 को दोपहर के समय यूपी पुलिस ने करीब 24 राउंड फायरिंग की। जिसमें 7 लोगों की जान चली गई और डेढ़ दर्जन लोग घायल हो गए। यह सब सीएम मुलायम सिंह यादव के आदेश पर हो रहा था। इसके बाद उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर लोगों का गुस्सा पहले से ज्यादा उग्र हो गया। रामपुर तिराहा कांड में कई पुलिसकर्मियों और प्रशासनिक अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज हुई और फिर 1995 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए।

पुलिसवालों ने महिलाओं से रेप, डकैती तक की, लेकिन नहीं मिल पाया न्याय

रामपुर तिराहा कांड में दो दर्जन से अधिक पुलिसवालों पर रेप, डकैती, महिलाओं के साथ छेड़छाड़ के मामले दर्ज किये गए। 2003 में फायरिंग के लिए तत्कालीन डीएम को भी नामजद किया गया और उत्तराखंड हाई कोर्ट ने एक पुलिसकर्मी को सात साल जबकि दो अन्य पुलिकर्मियों को दो दो साल की सजा सुनाई। लेकिन 2007 में तत्कालीन एसपी को भी सीबीआई कोर्ट ने बरी कर दिया और फिर मामला लंबित ही रहा। राज्य आंदोलनकारी पर हुई इस बर्बरता को न्याय नहीं मिल पाया।

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