पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा- आपदाओं को रोकने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की है कमी, विकास के लिए हो रहा जंगलों का अंधाधुंध कटान, नदियों में खनन…(वीडियो)

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नैनीताल। डॉ. रघुनंदन सिंह टोलिया उत्तराखंड प्रशासन अकादमी, नैनीताल में एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन हुआ, जिसमें पर्वतीय राज्यों में आपदाओं के न्यूनीकरण एवं उनके लिए प्रबंधन नीतियों पर एक कार्यशाला का आयोजन हुआ। इसमें प्रमुख वक्ता के तौर पर मौजूद उत्तराखंड के पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट ने अपनी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि हिमालय में ऐसी किसी भी गतिवधि को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए, जिससे इसकी संवेदनशीलता को खतरा होता है।

मुख्य रूप से उत्तराखंड में जो भी मौसम परिवर्तन देखने को मिल रहा है, उनमें मानवीय गतिविधियों को कारण आपदाओं में बढोतरी हो रही है। हमारे इलाके में जो बाजार का दबाव है, जहां ग्लेशियर है, हिमनद है, वहां कीड़ाजड़ी जैसी दुर्लभ जड़ी बूटियों के कारण अवैध खनन किया जा रहा है, जंगलों का कटान किया जा रहा है। दूसरा, नदियों के किनारे खनन आदि कार्य तेजी से किया जा रहा है। हालांकि इनकी रोकथाम के लिए कई कानून बने हैं, लेकिन इनके क्रियान्वयन में बहुत शिथिलता है।

बड़ी बात यह है कि इस मुद्दे पर राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव है। आपदा आने के बाद बचाव कार्य तो तेजी से किए जाते हैं, लेकिन आपदाओं को कम करने के लिए कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता, इसके लिए आपदा प्रबंधन का कार्य आवश्यक रूप से होना चाहिए। विकास को आपदा प्रबंधन से जोड़ा जाना चाहिए। बड़ी-बड़ी परियोजनाओं को उसकी स्थिरता और संवदेनशीलता की समझ होनी चाहिए। अनावश्यक तौर पर संवदेनशील क्षेत्रों पर किए जा रहे विकास कार्यों की जिम्मेदारी संबंधित सरकार की होनी चाहिए। नदियों के किनारे सड़क चौड़ीकरण के कारण भी नुकसान हो रहा है।

क्योंकि मलबा नदी में डाल दिया जाता है, जो बारिश आने पर नदी के तल को उठा देता है। इसलिए जरूरी है कि इन सब चीजों की समझ पहले से हो। आम जन को भी इसके लिए जागरूक होना चाहिए कि उनके इलाके में कौन से विकास कार्य नुकसानदेह हो सकते हैं।

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