यूनेस्को वर्ल्ड कल्चरल हेरिटेज में शामिल है कुमाऊं की रामलीला, ये है विशेषता…

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शहरी चकाचौंध से दूर, पहाड़ की शांत वादियां। छोटे होते दिनों में आजकल पता ही नहीं चलता कि दिन कब बीत जाता है। सूर्यदेव के क्षितिज पर पहुंचते-पहुंचते घर में हलचल तेज हो जाती है। कोई खाना बना रहा है तो कोई मवेशियों का चारा पानी करने में लगा है। यह अन्य दिनों की तुलता में कुछ एक-डेढ़ घंटे पहले हो रहा है। कारण है अद्भुत राम की अनंत लीला के दर्शन का…। निशब्द रात में जब राम लीला की चौपाई गाते कलाकारों के स्वर पहाड़ की वादियों से टकराकर लोगों तक पहुंचते हैं तो लोग खुद को अलग ही लोक में महसूस करते हैं।

चीड़ के छिलुके और पेट्रोमैक्स की रोशनी से शुरू हुई उत्तराखंड की रामलीला डेढ़ शताब्दी से अधिक का सफर तय कर आज आधुनिक हो गई है। बदलते जमाने के साथ रामलीला में काफी परिवर्तन हो गया है। स्टेज से लेकर परिधान, आभूषण और युद्ध के दौरान प्रयोग में लाए जाने वाले अस्त्र भी आधुनिक हो गए हैं या फिर कह सकते हैं बदल गए हैं। इतने समय बाद भी एक चीज है जो नहीं बदली और वह है लीला के प्रस्तुतीकरण का तरीका। कुमाऊं संभाग सहित उत्तराखंड के अधिकतर हिस्सों में आज भी राम लीला को नाटक की तरह प्रस्तुत नहीं किया जाता। पात्र चौपाई गाते हुए अभिनय करते हैं और राम कथा को श्रद्धालुओं तक पहुंचाते हैं। इसी विशेषता के कारण यूनेस्को ने इसे सबसे लंबा ऑपेरा घोषित करते हुए वर्ल्ड कल्चरल हेरिटेज सूची में शामिल किया है।

यह सब यूहीं नहीं हो गया। इसके पीछे उन कई हफ्तों का‌ रियाज और तालीम होती है। रामलीला के लिए पात्रों का चयन बहुत सोच समझकर किया जाता है। उन्हीं कलाकारों को अहमियत दी जाती है, जो संगीत को समझते हैं। हारमोनियम के पास बैठाकर कलाकारों को गायन की तालीम दी जाती है। जब तक हारमोनियम के साथ सुर नहीं मिलते चयन नहीं होता है। सही मायने में कहा जाए तो गायन में ही कुमाऊं की रामलीला का असली रस छिपा है।

राम कथा दिखाने के साथ-साथ रामलीला की चौपाइयां लोगों को संदेश भी देती हैं। फिर भले ही स्वयंवर के बाद मां सुनैना का सीता से कहना हो… सुनियो रि लाडली सीता, पति की सेवा करियो री, पतिहि छोड़कर और की आशा, उसका होय नरक में बासा.. हो या फिर सीता का अपहरण कर लाए रावण को उसकी पत्नी मंदोदरी द्वारा …पति कर जोर विनय यह तुमसे सीता दे दीजे, नारी पराय छिपाय नाथ जग, अपयश क्यों लीजे पति तुम सीता दे दीजे.. कहना। सब में कोई न कोई संदेश छिपा है।

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