चमोली के इस इलाके में रावण को माना जाता है पूजनीय, आज भी रामलीला मंचन की शुरुआत रावण के तप से ही होती है…

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बदरीनाथ धाम के पुराने तीर्थमार्ग पर स्थित है। यहीं से 10 किलोमीटर दूर स्थित है बैरास कुंड। चमोली जनपद के घाट ब्‍लाक स्थित बैरासकुंड में भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर है। इस मंदिर में भगवान शिव का स्वयंभू लिंग है। कहते हैं इस जगह रावण ने अपने अराध्य भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। अपनी ताकत दिखाने के लिए रावण ने कैलाश पर्वत को उठा लिया था। रावण ने यहीं पर अपने 9 सिरों की बलि दी थी। तब से इस जगह को दशोली कहा जाने लगा। रावण ने भगवान शिव से सदा इस स्थान पर विराजने का वरदान भी मांगा था। यही कारण है कि आज भी इस स्थान को शिव की पवित्र भूमि के रूप में जाना जाता है। बैरासकुंड में शिव के दर्शन को आने वाले भक्त रावण को भी श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं और उसकी पूजा करते हैं।

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इस पूरे क्षेत्र का नाम दशानन के नाम से ही दशोली पड़ा। दशोली क्षेत्र में आज भी रामलीला मंचन की शुरुआत रावण के तप और भगवान शिव द्वारा उसे वरदान दिए जाने से ही होती है, इसके बाद ही राम जन्म की लीला का मंचन किया जाता है। कहते हैं कि बैरास कुंड महादेव मंदिर में पूजा-अर्चना करने से हर मनोकामना पूरी होती है। शिवरात्रि और श्रावण मास के अवसर पर यहां दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। स्कंद पुराण के केदारखंड में दसमोलेश्वर के नाम से बैरास कुंड क्षेत्र का उल्लेख किया गया है। बैरास कुंड में जिस स्थान पर रावण ने शिव की तपस्या की वह कुंड, यज्ञशाला और शिव मंदिर आज भी यहां विद्यमान है। बैरास कुंड के अलावा नंदप्रयाग का संगम स्थल, गोपाल जी मंदिर और चंडिका मंदिर भी प्रसिद्ध है। देवभूमि में स्थित शिव के धामों में इस जगह का विशेष महत्व है।

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