एक ऐसा जाबांज, जो जाते-जाते पूरे नैनीताल को रूला गया (कारगिल विजय दिवस : 23वीं वर्षगांठ)

ख़बर शेयर कर सपोर्ट करें

आज है कारगिल विजय दिवस। बात 1999 की है… तब मैं शायद दूसरी कक्षा में पढ़ा करता था। हम शाम को दूरदर्शन में कारगिल युद्ध से जुड़ीं खबरें सुना करते थे। दिन में रेडियो पर भी समय-समय पर इसका अपडेट मिला करता था। हमारे गांव से कुछ ही दूरी पर आर्मी का छावनी क्षेत्र है। वहां हेलीपैड है तो हेलिकॉप्टर अक्सर उड़ान भरते रहते करते हैं। लेकिन उन दिनों जब हेलिकॉप्टर उड़ान भरा करते थे तो हम सहम जाते थे। हमें लगता था कि अब यहां हमला होने वाला होगा। उसी दौरान एक दिन हमें पता चला कि नैनीताल के एक मेजर को युद्धभूमि में वीरगति प्राप्त हुई है।

यह भी पढ़ें -   शराब सस्ती और बिजली,पानी मंहगा ये कैसा जनहित : डा. कैलाश पाण्डेय

छोटे थे तो नैनीताल तो जाना नहीं हो पाया लेकिन लोगों को कहते सुना कि मेजर राजेश अधिकारी का पार्थिव शरीर के दर्शनों के लिए नैनीताल में सैलाब उमड़ पड़ा था। हर किसी को अपने शहर के बेटे की वीरता पर नाज तो था लेकिन उसके जाने का गम आंखों में साफ देखा जा रहा था। शायद ही कोई ऐसी आंख होगी जो नम न हो।

दरअसल मई 1999 में पाकिस्तानी घुसपैठिये कारगिल के टाइगर हिल पर कब्जा जमाए बैठे थे और लगातार हमले कर रहे थे। भारतीय सैनिकों के सामने चोटी तक पहुंचकर दुश्मन के ठिकानों को तबाह करने की चुनौती थी। इसके लिए सेना ने सबसे पहले तोलोलिंग से दुश्मन को हटाने की योजना बनाई। इसकी जिम्मेदारी मेजर राजेश सिंह अधिकारी को दी गई। मेजर अधिकारी ने टीम के साथ चढ़ाई शुरू की। भारतीय सैनिकों के रॉकेट लांचर के हमले में उलझा दुश्मन कुछ समझ पाता इससे पहले ही अधिकारी ने बंकर को तबाह कर पाकिस्तानी दुश्मन को मार दिया। 15 हजार फुट की ऊंचाई पर बर्फ के बीच घुसपैठियों ने उन पर हमला बोल दिया। दुश्मन की गोलियों से वह जख्मी हो गए।

यह भी पढ़ें -   नैनीताल: बॉटनिकल गार्डन में महकने लगी ऑर्किड की खुशबू ...

इसके बावजूद उन्होंने दो बंकरों को नेस्तेनाबूत कर दिया और प्वाइंट 4590 पर कब्जा कर लिया। हालांकि बुरी तरह जख्मी हो चुके मेजर राजेश सिंह अधिकारी वीरगति को प्राप्त हुए। उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से नवाजा गया। यह युद्ध के मैदान में बहादुरी के लिए दूसरा सर्वोच्च सैन्य सम्मान है। यह पहाड़ के खून में देशभक्ति का उबाल ही था कि राजेश 22 साल की उम्र में सेना में भर्ती हुए और 29 की उम्र में उन्होंने मातृभूमि की रक्षा में अपने प्राणों की आहूति दे दी। मुझे गर्व है इस पहाड़ की मिट्टी पर कि आज भी सुबह जब सैर पर निकलूं तो सड़कों पर सैकड़ों युवा फौज में जाने का जुनून लिए दौड़ते दिखते हैं।

यह भी पढ़ें -   बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम में वीआईपी दर्शन का शुल्क होगा ₹300, बोर्ड बैठक में लिया गया निर्णय...

साभार : वरिष्ठ पत्रकार दीपक सिंह नेगी की फेसबुक पोस्ट

Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments