वर्तमान में देश का माहौल सामान्य नहीं है। नेताओं की बयानबाजी से फिजा में सामप्रदायिक सौहार्द की मिठास फीकी पड़ती जा रही है। हिंदू-मुस्लिम की राजनीति चरम पर है। भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नुपुर शर्मा की मोहम्मद साहब पर की गई विवादित टिप्पणी के बाद से जहां पूरे देश में मुसलमानों में रोष है, वहीं उदयपुर में दर्जी की हत्या ने इस पूरे प्रकरण में आग में घी डालने का काम किया।
सनातन धर्म को विश्व पटल पर पहचान दिलाने वाले और शिकागो सम्मेलन में अपने उद्बोधन से संपूर्ण विश्व को हिंदुत्व का मुरीद बनाने वाली स्वामी विवेकानंद से जुड़ी एक बात है जो हमें एकता का संदेश देती है।
बात 1890 की है। स्वामी विवेकानंद हिमालय यात्रा के दौरान अल्मोड़ा के करबला पहुंचे थे। सफर की थकान के कारण वह बेहोश होकर गिर गए। जुल्फिकार अली नाम के एक फकीर तब उन्हें अचेत अवस्था में देखा तो तुरंत पानी और ककड़ी लेकर उनके पास पहुंचे।
स्वामी जी ने उन्हें देखा तो उनसे ककड़ी खिलाने के लिए कहा। धर्म जाति के बंधन में बंधे समाज की चिंता कर जुल्फिकार थोड़ा असहज हो गए। उन्होंने स्वामी जी से कहा कि ‘आप धर्मात्मा हैं और में एक फकीर हूं। मैं आपको यह कैसे खिला सकता हूं।’ तब स्वामी जी ने कहा था कि ‘क्या हम सब भाई-भाई नहीं हैं’, जिसके बाद फकीर ने उन्हें ककड़ी खिलाई और पानी पिलाया और स्वामी जी आगे की यात्रा पर निकल गए।
कुछ वर्षों बाद जब स्वामी जी दोबारा अल्मोड़ा पहुंचे तो उन्होंने उन्होंने यहां एक सभा को संबोधित किया। इस दौरान जुल्फिकार भी स्वामी जी को सुनने पहुंचे थे। फकीर को देखते ही स्वामी विवेकानंद उन्हें पहचान गए।
उन्होंने जुल्फिकार को मंच पर बुलाया और सभी को बताया कि आज अगर वह जिंदा हैं, तो सिर्फ जुल्फिकार अली की वजह से ही है। उन्होंने फकीर को दो रुपये दिए। जुल्फिकार का पीढ़ी आज भी उस स्थान की देखरेख करती हैं, जहां स्वामी विवेकानंद अचेत हो गए थे।
(लेख- वरिष्ठ पत्रकार दीपक सिंह नेगी के ब्लॉग से साभार)