बच्ची का नामकरण क्या किया जाए, इस बात को लेकर मां-बाप में झगड़ा हो गया । झगड़ा इतना लंबा चला कि तीन साल तक बच्ची का कोई नाम ही नहीं रखा जा सका। यहां तक कि इस झगड़े में दोनों सेपरेशन में भी चले गए। मामला अदालत में पहुंचा। अंततः केरल हाई कोर्ट ने बच्ची का नाम खुद रखकर मामले को सुलझाया। आज के पर मौके पर यह खबर इसलिए महत्वपूर्ण है, कि आज से पूरे देश में एक जरूरी दस्तावेज के रूप में जन्म प्रमाण पत्र अनिवार्य कर दिया गया है।
ये था नामकरण का झगड़ा
दरअसल, बालगंगाधर नायर नामक व्यक्ति की पत्नी पुण्या ने 12 फरवरी 2020 को एक पुत्री को जन्म दिया। बेटी के जन्म के बाद पिता उसका नाम पद्मा नायर रखना चाहते थे, जबकि मां कुछ और नाम रखना चाहती थी। बच्ची के नाम को लेकर शुरू हुई तकरार कुछ इतना आगे बढ़ी कि दोनों एक-दूसरे से अलग रहने लगे। मां बेटी को अपने साथ ले गई।
जब मां बच्ची को स्कूेल में उसका दाखिला कराने के लिए ले गई तो स्कूल प्रबंधन ने देखा कि बच्चीू के जन्म प्रमाणपत्र पर कोई नाम नहीं था। उन्होंने बिना नाम वाले उस जन्म प्रमाणपत्र को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और नाम के साथ ही जन्म प्रमाण पत्र लाने को कहा। मां बच्ची का नाम दर्ज करवाने के लिए रजिस्ट्रार के दफ्तर में गई। वहां उसने बच्ची का नाम ‘पुण्या नायर’ दर्ज करवाने का आवेदन किया। लेकिन रजिस्ट्रार ने नाम दर्ज करने के लिए माता-पिता दोनों को उपस्थित होने के लिए कहा।
चूंकि इस मसले पर पति-पत्नी दोनों अलग-अलग रह रहे थे। इसलिए पत्नी मामले के समाधान के लिए अदालत की चौखट पर पहुंची। अदालत ने दोनों पक्षों को सुना। लेकिन अदालत में भी पति-पत्नी में सहमति नहीं बन पाई। पिता बच्चीम का नाम ‘पद्मा नायर’ रखने पर अड़ा रहा और मां अपने नाम पर।
कोर्ट ने ऐसे सुलझाया झगड़ा
उच्च न्यायालय की पीठ ने सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद कहा कि बच्ची वर्तमान में मां के साथ रह रही है, इसलिए मां के सुझाए गए नाम को उचित महत्व दिया जाना चाहिए। साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि पिता का नाम भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि पिता का पक्ष भी निर्विवाद था।
पीठ ने कहा कि माता-पिता के बीच विवाद को सुलझाने के प्रयास में समय लगेगा और इस बीच बच्ची के लिए कोई नाम न होना उसके कल्याण या सर्वोत्तम हितों के लिए अनुकूल नहीं होगा। अदालत ने कहा, ‘इस तरह के क्षेत्राधिकार के प्रयोग में बच्ची के कल्याण को सर्वोपरि माना जाता है, न कि माता-पिता के अधिकारों को। अदालत को बच्चे के लिए एक नाम चुनने का कार्य करना होता है।… इस प्रकार, यह अदालत याचिकाकर्ता की बच्चीक के लिए एक नाम का चयन करने के लिए अपने माता-पिता के अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने के लिए मजबूर है।‘
अदालत ने कहा कि नाम चुनते समय हमें बच्ची के हित व कल्याण, सांस्कृतिक पृष्ठभमि, सामाजिक परिवेश व माता-पिता दोनों के हितों का ध्यान रखना होगा। इसके आधार पर अदालत बच्ची का नाम ‘पुण्या बालगंगाधरन नायर’ या ‘पुण्या बी. नायर’ के नाम पर पहुंची और फैसला सुनाया। हाई कोर्ट ने कहा, ‘नाम पर दोनों पक्षों के बीच विवाद को शांत करने के लिए बच्ची का नाम पुण्या रखने का निर्देश दिया जाता है और नायर के साथ पिता का नाम बालगंगाधर भी जोड़ा जाएगा।