जिसकी आवाज को सब सुनते हैं, उसके गांव की कोई नहीं सुनता…(सिस्टम पर चोट करती अपील)

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नैनीताल। धृतराष्ट्र तो पहले से ही अंधे थे लेकिन गांधारी ने स्वयं ही अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। कुछ ऐसा ही हाल शासन और प्रशासन का है। बीते अक्तूबर में आई अतिवृष्टि ने जो तबाही मचाई थी उसके मंजर अभी भी देखने को मिल रहे। काठगोदाम से पहाड़ को चलिये… आपको जगह-जगह एक साल पहले से उधड़ी सड़कें, मकानों पर पड़ीं दरारें, खतरे की जद में गांवों को तो दिख रहे हैं लेकिन न धृतराष्ट्र बने शासन को इसकी चिंता है और न ही गांधारी बने प्रशासन को इसकी कोई फिक्र…।


हेलो हाय… मैं हूं पंकज जीना। आप में से अधिकतर लोग दिन में इस आवाज को अपने मोबाइल पर जरूर सुनते होंगे। पूरी दुनिया जिस पंकज जीना को सुनती है उसके गांव की पीड़ा को कोई नहीं सुन रहा है।


दरअसल ज्योलिकोट का चोपड़ा गांव भी बीते साल अतिवृष्टि की जद में आया था। हालांकि कुछ बड़ा नुकसान नहीं हुआ लेकिन गांव के ऊपर पत्थर की बड़ी चट्टाने अपने स्थान से खिसकने लग गई थी। इस बरसात में इसके खिसकने की रफ्तार तेज हो रही है। ऐसे में भगवान न करे किसी दिन किसी चट्टान गांव की ओर पूरे वेग से आ गई तो बड़ी दुर्घटना होने की आशंका है। ग्रामीणों ने इस संदर्भ में तहसील से लेकर जिले के अधिकारियों अवगत करा दिया है लेकिन वह गांधारी की तरह आंख में पट्टी बांधे बैठे न जाने किस की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

गांव के ही पंकज जीना (जाने माने आरजे) ने गांव के हालात पर चिंता जताते हुए सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की।
बीते साल प्रकृति के तांडव का सामना कर चुके रामगढ़ के सकुना-झुतिया के निवासियों को अब तक राहत के नाम पर कुछ मिला है तो वह है सिर्फ आश्वासन।


आज भी बारिश होने पर लोग डर से सहम जाते हैं। सीएम साहब भूल गए कि जब लोगों के आपदा के जख्म हरे हों तो आश्वासन की घुट्टी नहीं बल्कि राहत दिलाने वाला मरहम चाहिए होता है। लेकिन क्या कहें सरकार किसी की भी रही हो ‘धृत्तराष्ट्र’ ही रही है।

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