उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है. इसके कई कारण हैं. यहां पर कदम-कदम पर भगवानों का वास है. वहीं इस पूरे प्रदेश की महिमा ही दैवीय हैं. वहीं, पिथौरागढ़ जिले की गंगोलीहाट के रावल गांव में स्थापित मां हाट कालिका (Maa Haat Kalika) का मंदिर श्रद्बालु के लिए अटूट आस्था का प्रतीक है. मान्यता है कि यहां सच्चे भाव से जो भी आता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है. यहां पर विराजमान काली मां भारतीय सेना में सबसे पराक्रमी कुमाऊं रेजीमेंट की आराध्य देवी हैं.
देवी मां के कुमाऊं रेजिमेंट की आराध्य देवी बनने की कहानी बेहद ही दिलचस्प है. असल में युद्ध के दौरान कुमाऊं रेजीमेंट की एक टुकड़ी पानी के जहाज से कहीं जा रही थी. इस दौरान जहाज में तकनीकी खराबी आ गई और जहाज डूबने लगा. ऐसे में मौत नजदीक देख टुकड़ी में शामिल जवान अपने परिजनों को याद करने लगे तो टुकड़ी में शामिल पिथौरागढ़ निवासी सेना के एक जवान ने मदद के लिए हाट कालिका मां का आह्वान किया. जिसके बाद देखते-देखते डूबता जहाज पार लग गया और यहीं से हाट कालिका कुमाऊं रेजिमेंट की आराध्य देवी बन गई. आज भी कुमाऊं रेजिमेंट की तरफ से मंदिर में नियमित तौर पर पूजा -अर्चना की जाती है. तो वहीं कुमाऊं रेजिमेंट का युद्धघोष ही ‘कालिका माता की जय’ है.
पुराणों में हैं मंदिर का जिक्र
हाट कालिका मंदिर गंगोलीहाट में है. इसमें के चारों तरफ देवदार के पेड़ हैं, जो इस जगह की सुंदरता को और बढ़ाते हैं. मां काली का यह प्रसिद्ध मंदिर है. मां काली की उत्पत्ति राक्षस और दैत्यों का नाश करने के लिए हुई थी. आज भी देवी की शक्ति के स्वरूप में इनकी पूजा होती है. वहीं मंदिर के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं. स्कंद पुराण के मानस खंड में बताया गया है कि सुम्या नाम के दैत्य का इस पूरे क्षेत्र में प्रकोप था. उसने देवताओं को भी परास्त कर दिया था. फिर देवताओं ने शैल पर्वत पर आकर इस दैत्य से मुक्ति पाने के लिए देवी की स्तुति की. देवताओं की भक्ति से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने महाकाली का रूप धारण किया और फिर सुम्या दैत्य के आतंक से मुक्ति दिलाई. जिसके बाद से ही इस स्थान पर महाकाली की शक्तिपीठ के रूप में पूजा होने लगी. वहीं कुछ जगह पर उल्लेख है कि महाकाली ने महिषासुर रक्तबीज जैसे राक्षसों का वध भी इसी स्थान पर किया था.
शंकराचार्य ने दोबारा किया था स्थापित
कहा जाता है कि यहां पर मां कालिका पहले से विराजती थी, लेकिन देवीय मां की प्रकोप की वजह से यह जगह निर्जन थी. आदि गुरु शंकराचार्य जब इस क्षेत्र के भ्रमण पर आए तो उन्हें देवी के प्रकोप के बारे में बताया गया. इस प्रसंग के अनुसार उस दौरान देवी मां रात को महादेव का नाम पुकारती थीं और जो भी व्यक्ति उस आवाज को सुनता था, उसकी मौत हो जाती थी. ऐसे में आस-पास से लोग गुजरने से भी कतराते थे, फिर आदि गुरु शंकराचार्य ने अपने तंत्र मंत्र जाप से देवी को खुश किया और फिर इस मंदिर की दोबारा स्थापना की गई.
मंदिर में मां का रोज लगता है बिस्तर
कुमाऊं रेजिमेंट ने यहां पर अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ यहां पर गेस्ट हाउस भी बनाया है, जहां भक्तों को रात्रि विश्राम की सुविधा मिलती है. मान्यता है कि मंदिर के अंदर रात्रि भोज के बाद माता का शयनकक्ष में बिस्तर लगाया जाता है और रात्रि में मुख्य द्वार पर ताले लगाए जाते हैं. सुबह की आरती के समय जब पुजारी मंदिर के कपाट खोलते हैं तो बिस्तर सिमटा मिलता है. यह प्रतिदिन देखा जा सकता है. कहा जाता है कि माता प्रतिदिन मंदिर में आती हैं.
मंदिर में प्रचलित मान्यता
इस मंदिर में अगर श्रद्धालु सच्चे मन से मां की आराधना करता है तो उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. यहां पर भक्तों के द्वारा मंदिर में चुनरी बांधकर अपने मन की बात कहते हैं फिर जब मनोकामना पूरी होती है तो दोबारा आकर घंटी चढ़ाने की परंपरा है. गंगोलीहाट स्थित हाट कालिका को मूल रूप माना जाता है, वहीं हाट कालिका का एक रूप पिथौरागढ़ से 20 किलोमीटर दूर लछैर नामक जगह पर भी है. यहां पर भी कालिका मंदिर स्थापित है. जो लोग मां के दर्शन के लिए हाट कालिका नहीं पहुंच सकते हैं, वह लछैर स्थित कालिका मंदिर में दर्शन के लिए पहुंंचते हैं.