बैठकों तक सीमित कार्ययोजना, सुरक्षा राम भरोसे
हल्द्वानी। पुलिस की कार्यप्रणाली भी अजीब है। दावा तो अपराध नियंत्रण का किया जाता है, लेकिन इस पर काम नहीं होता है। बाहरी शहरों में बदमाशों को तलाशने वाली पुलिस के पास अपने ही शहर के निवासियों का ब्यौरा नहीं है। जी हां, हम बात कर रहे हैं नगर में रात में फुटपाथ पर सोने वालों की। जिनका पुलिस के पास कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। ऐसे में नगर की सुरक्षा व्यवस्था का अंदाजा स्वतः लगाया जा सकता है।
अपराध नियंत्रण के लिए पुलिस तमाम दावे करती रहती है। इसके लिए पुलिस कई नामों से अभियान भी चला रही है। इसमें सत्यापन अभियान भी शामिल है। इस अभियान के शुरूआती दौर में पुलिस ने नगर में किराए में रह रहे बाहरी लोगों के सत्यापन पर जोर दिया। जिससे काफी हद तक अपराध भी नियंत्रित हुआ। लेकिन वक्त बीतने के साथ-साथ यह अभियान भी ठंडे बस्ते में चला गया। इन दिनों भी नगर में अपराधिक घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। एक के बाद एक अपराधिक घटनाएं घटित हो रही हैं। जिन पर कार्रवाई के नाम पर सर्वप्रथम पुलिस सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालती है। इसके बाद दूसरे शहरों की खाक छानी जाती है।
लेकिन अपने ही शहर की सुध पुलिस को नहीं है। दरअसल, रात के समय फुटपाथों में कई लोग सोते दिखाई देते हैं। लेकिन फुटपाथ पर सो रहे इन लोगों पर पुलिस की नजर नहीं जाती है। फुटपाथ में सोने वाले कहां से आये हैं और कितने समय से शहर में निवास कर रहे हैं, इसका पता पुलिस को नहीं है। ऐसे में इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुलिस अपराध नियंत्रण के प्रति कितनी गंभीर है। यहां बता दें कि पुलिस कर्मचारियों के अलावा अधिकारी भी शहर में घूमते रहते हैं, बावजूद इसके फुटपाथ पर सोने वालों के सत्यापन की सुध किसी ने नहीं ली है। ऐसे में शहर की सुरक्षा व्यवस्था रामभरोसे ही दिखाई दे रही है।
अपराध के बाद कसे जाते हैं पेंच
शहर में किसी भी अपराधिक घटना के घटित होने के बाद अधीनस्थों के पेंच कसना पुलिस अधिकारियों की कार्यप्रणाली में शुमार कर गया है। घटना के घटित होते ही अधिकारी तमाम दिशा-निर्देश देते रहते हैं, लेकिन यह निर्देश बैठक के बाद कागजों में सिमट कर रह जाते हैं। इन निर्देशों के अनुपालन की तरफ न तो अधीनस्थ ही ध्यान देते हैं और न ही पुलिस अधिकारियों को ही अपने निर्देशों की याद आती है।
रात में धार्मिक स्थलों के आस-पास भी दिखती है भीड़
रात में धार्मिक स्थलों के आस-पास भी बड़ी संख्या में लोगों को बैठे देखा जा सकता है। यह लोग कौन हैं और रात के समय धार्मिक स्थलों को ही मजफूज स्थान क्यों समझते हैं, यह जानने की भी जहमत पुलिस के किसी भी अधिकारी व कर्मचारी ने आज तक नहीं उठाई है। ऐसे में इन लोगों की तरफ भी संदिग्धता का सवाल खड़ा होता है।
(रिपोर्ट- वरिष्ठ पत्रकार सलीम खान)