सोशल मीडिया पर इन दिनों उत्तराखंड में भू कानून बनाने को लेकर आवाज उठ रही है और जमकर ट्रेंड कर रही है , जिसमें युवा बढ़-चढ़कर सोशल मीडिया पर इसे आगे बढ़ा रहे हैं देवभूमि उत्तराखंड में बाहरी उद्योगपति और बिल्डरों द्वारा जमीन खरीद कर वास्तविक जंगलों को कंक्रीट के जंगलों में तब्दील करने की लगातार कवायद चल रही ,जिसमें अब युवा भूमि को बचाने को लेकर विशेष मुहिम छेड़ रहे हैं । टि्वटर हो फेसबुक इंस्टाग्राम हो या अन्य सोशल मीडिया साइट सभी जगह उत्तराखंड मांगे भू कानून ट्रेंड कर रहा है उत्तराखण्ड में भू कानून की मांग को लेकर पहाड़ के युवाओं द्वारा इन दिनों विशेष मुहिम चलाई जा रही है, जिसमें हमारे पड़ोसी राज्य हिमांचल प्रदेश से उत्तराखण्ड की तुलना करते हुए दर्शाया गया है। पहाड़ी राज्यों में भू कानून मजबूत होना इसलिए जरूरी है, ताकि पहाड़ो की वास्तविकता और पहचान बरकरार रहे,
प्रदेश में अगर भू कानून के इतिहास पर नजर डालें तो राज्य बनने के बाद अन्य राज्यों के लोग यहां 500 वर्ग मीटर जमीन खरीद सकते थे जिसकी सीमा 2007 में ढाई सौ वर्ग मीटर कर दी , वही सन 2018 में सरकार ने चौंकाने वाला फैसला सामने रखा सरकार ने अध्यादेश लाकर उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 में संशोधन विधेयक पारित करते हुए धारा 143 क और धारा 154 (2) जोड़कर पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा समाप्त कर दी।
वहीं अगर पड़ोसी राज्य हिमाचल में भू कानून की बात करें तो यहां बाहरी राज्यों के उद्योगपति और भू माफियाओं को जमीन नहीं मिलती ताकि हिमाचल की पहचान बनी रहे,हिमांचल के पहले मुख्यमंत्री यसवंत सिंह परमार के ऐतिहासिक फैसलों ने आज भी उस पहाड़ी राज्य को संजोए रखा है।जिनके द्वारा कठोर भू कानून समेत बागवानी व पर्यटन को बढ़ावा दिया गया, जो आज हिमांचल की मजबूत रीढ़ साबित हुई है ,
देवभूमि उत्तराखंड की सुंदरता और पहाड़ों को अगर बचाना है तो वह कानून लाना बेहद जरूरी है इससे न सिर्फ राज्य की जनता को फायदा होगा बल्कि पर्यटन के क्षेत्र में स्वरोजगार समेत अनेक लाभ मिल सकेंगे फिलहाल सोशल मीडिया पर युवाओं के साथ ही लोक कलाकार भी भू कानून की मांग कर रहे हैं वहीं आगामी विधानसभा चुनाव में भी यह बड़ा मुद्दा बन सकता है वही भू कानून को लेकर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा है कि अगर उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार आती है तो वह निश्चित तौर पर वह भू कानून जरूर लाएंगे लोगों का यह भी कहना है कि यह उत्तराखंड की संस्कृति, भाषा, रहन-सहन और पौराणिक सभ्यता के खतरे की घंटी है ऐसे में अब लोग हिमांचल जैसे सख्त भू कानून लागू करने की मांग कर रहे हैं।