हिंदू सभ्यता के अनुसार , अभी श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं। वहीं आज सोमवार को पितृ पक्ष की नवमी का दिन है। इस दिन घरों में विधि विधान से पितरों की पूजा कर उनके लिए भोजन बनाया जाता है और पहाड़ों में तिमिल के पत्तों में यह भजन पितरों को अर्पित किया जाता है। तिमिल के पत्ते बहुत पवित्र माने जाते हैं इसीलिए इनमें भोजन परोसा जाता है। पहाड़ों में तिमिल के पत्तों का उपयोग अत्यधिक देखा जाता है। इसके पीछे कई वजह हैं।
तिमिल का वानस्पतिक नाम फाइकस ऑरीक्यूलेटा है। आम भाषा में तिमुल कहे जाने वाला ये पेड़ 800 से 2200 मीटर की ऊंचाई तक पाये जाते हैं। इसकी पत्तियां 20 से 25 सेंटीमीटर तक चौड़ी होती हैं। इस पेड़ की पत्तियों को गाय भैंसों के चारे के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। इसके पत्तों को खाकर दुधारू जानवरों का दूध भी बढ़ जाता है। वहीं इसके फल को खाने के रूप में भी इस्तेमाल में लाया जाता है। शुरुआत में जब इसके फल कच्चे होते हैं, तब पहाड़ों में इसकी सब्जी बनाकर खाई जाती है। हल्के लाल और पीले हो जाने पर इसका स्वाद काफी अच्छा होता है। इसके फल ज्यादा पकने पर काले भी हो जाते हैं जो इसमें कीड़ा लगने की निशानी है।
तिमले के तेल में कैंसररोधी क्षमता वाला वैसीसिनिक एसिड भी पाया जाता है। दिल की विभिन्न बीमारियों के इलाज में कारगर लाइनोलेनिक एसिड भी इस फल में पाया गया है। यह दिल की धमनियों के ब्लॉकेज हटाने में सहायक होता है। इसके अलावा इसमें पाया जाने वाला ऑलिक एसिड लो-डेंसिटी लाइपोप्रोटीन की मात्रा शरीर में कम करता है, इस प्रोटीन से कोलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ता है। कीड़े भी इसके पत्तों को काफी पसंद करते हैं।
धार्मिक महत्व की बात करें तो इसकी पत्तियां इस दृष्टिकोण से बहुत ही पवित्र मानी जाती हैं, जिसके चलते पितृ श्राद्ध पर तर्पण के दौरान इन्हीं से बने पत्तल में पितरों को भोग लगाया जाता है। पहाड़ों में इसके साफ पत्तों से पत्तल बनायी जाती थी। हालांकि अब शादी या अन्य किसी कार्य में ‘माल़ू’ के पत्तों से बने पत्तलों या फिर से प्लास्टिक थर्माकोल से बने पत्तलों का उपयोग किया जा रहा है, लेकिन एक समय था जब पत्तल सिर्फ तिमिल के पत्तों के बनाये जाते थे। कई ब्राह्मण कम से कम पूजा में तिमला के पत्तों और उनसे बनी ‘पुड़की’ का उपयोग करना पसंद करते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि पहले के समय में बर्तनों के अभाव के कारण व्यक्ति इसके पत्तों की अधिक मात्रा में उपलब्धता होने के कारण इसका उपयोग करता था। क्योंकि यह पत्ता काफी बड़ा होता है, जिससे इसका प्रचलन बढ़ गया। गढ़वाल में इसे तिमला कहा जाता है।
तिमिल का रायता भी पहाड़ों में लोक प्रिय बेहद लोकप्रिय है। नेपाल में इस पेड़ की छाल का जूस बनाया जाता है जो अपने आप में एक औषधि है साथ ही यह डाइरिया, चोट, घाव के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। वहीं इसके पत्तियों का जूस पीने से गैस्ट्रिक प्रॉब्लम से जल्द छुटकारा मिलता है।