उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के सभागार में आयोजित कुमाऊँनी फ़िल्म अङवाल के भारतीय प्रीमियर में एकत्र हुए। कार्यक्रम के संचालक राकेश रयाल ने बताया कि यह विशेष कार्यक्रम, बेहद ख़ास है, क्योंकि आज यहाँ हम लंदन स्थित प्रसिद्ध फ़िल्मकार, कवि, बीबीसी लंदन के पूर्व प्रसारक, लेखक व फिल्म इतिहासकार ललित मोहन जोशी की चर्चित कुमाऊँनी फ़िल्म अङवाल के भारतीय प्रीमियर पर एकत्र हुए हैं।
उन्होंने बताया कि अङवाल गत वर्ष 7 अगस्त को लंदन के ब्रिटिश फिल्म इंस्टिट्यूट (बीएफआई) में प्रीमियर के बाद भरपूर अंतरराष्ट्रीय ख्याति बटोर चुकी है। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में यह प्रीमियर भारत में इसका पहला प्रदर्शन है। सुप्रसिद्ध उर्दू शायर और फिल्म गीतकार गुलज़ार साहब के शब्दों में अङवाल हिन्दी की एक विरल बोली में संरक्षित कविता और साहित्य की एक दुर्लभ फ़िल्म है। बधाई हो ललित, हमारी संस्कृति का एक अध्याय सहेजने के लिए।”
अङवाल दरअसल कविता की जुबान में कविता की कहानी है। फ़िल्मकार ललित मोहन जोशी की यह आत्म कथात्मक फ़िल्म, कुमाऊनी कविता के उद्भव, विकास और उसमें अंतर्निहित दर्द की भी दास्तान है। ब्रिटेन के जाने माने फिल्म इतिहासकार चार्ल्स ड्रेज़िन का कहना है “अङवाल में सहेजने को बहुत कुछ है। इसकी मन्थर, सौम्य और शालीन गति, साक्षात्कारों की गर्मजोशी, गंभीरता और मानवीयता, अपनी ज़मीन पर लौटने और उसे फिर से समझने की पीड़ा, और एकदम विलोम दृश्यों को क़ैद करती सतत संवेदनशील कैमरे की आँख जो वादियों और पहाड़ों के मनोरम प्रारंभिक दृश्यों से लेकर पनचक्की के घूमते पाट के पटाक्षेप दृश्यों को, विदाई की इस मर्मस्पर्शी लक्षणा के साथ क़ैद करती चलती है कि जीवन गुज़रता जाता है पर कविता शाश्वत रहती है। अपनी समीक्षा के अंत में चार्ल्स ड्रेज़िन कहते हैं, कहने को और इतना कुछ है अङवाल में पर अब मेरे पास शब्द नहीं हैं।