पढ़िए, क्यों था हीरा सिंह राणा का पहाड़ से इतना जुड़ाव, उनके गीत आज भी याद दिलाते हैं पहाड़ का दर्द…

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पहाड़ी महिलाओं की व्यथा को जन जन तक अपनी कविता के जरिए पहुंचाने वाले हीरा सिंह राणा जी का आज जन्म दिवस है। उनकी कविता ” के सुणौं मैं तुमुकें पहाड़क सैंणियों का हाला” में पहाड़ की महिलाओं का मार्मिक स्मरण सुनने को मिलता है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर ‘दिनमान’ पत्रिका ने साल 1976 में हीरा सिंह राणा को प्रथम पुरुस्कार से भी सम्मानित किया था।

हीरा सिंह राणा का जन्म 16 सितंबर 1942 को अल्मोड़ा जिले के मानिला डंढ़ोली गांव में हुआ था। गांव में जन्म होने के कारण बचपन से ही हीरा सिंह राणा पहाड़ और पहाड़ के लोगों की परेशानियों से वाकिब थे। इसीलिए उनके हर गीत में पहाड़ प्रेम झलकता था। अब चाहे वह गीत लस्का कमर बांधा, हिम्मत का साथा, फिर भुला उजालि होलि कां ले रोलि राता..”’ हो या फिर ”त्यर पहाड़ म्यर पहाड़, हय दुखों क ड्यर पहाड़। बुजुर्गोंल ज्वड पहाड़, राजनीतिल् त्वड़ पहाड़ ” हो। उनके ये गीत पहाड़ की वेदनाओं को साफ जाहिर करते रहे हैं।

हीरा सिंह राणा पूरे उत्तराखंड में हिरदा के नाम से प्रचलित थे और उनके कुमाउंनी गीतों की एलबम रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी, सौ मनों की चोरा, ढाई बीसी बरस हाई कमाला, आहा रे जमाना जैसे गीत आज भी बेहद लोकप्रिय हैं। इस दौरान आकाशवाणी नजीबाबाद, लखनऊ और दिल्ली से भी उनके कई गीत प्रसारित हुए। उनका एक बहुप्रसिद्ध गीत रंगीली बिंदी, घाघरी काई.. धोती लाल किनार वाई आज भी लोगों की जुबान पर सुनाई पड़ता है तो पहाड़ियों के सामने हिरदा की स्मृति ताज़ा हो जाती है।

हिरदा के गीतों में अक्सर पहाड़ के जल जंगल और जानवरों का भी खूब जिक्र देखने को मिला है। चाहे उनका गीत ” आ ली ली बाकरी ली ली छु छु ” हो या फिर मेरी मानिला डानी.. हो उनके ” लस्का कमर बांधा ” को खूब सराहा गया है। गढ़वाली- कुमाऊंनी,- जौनसारी भाषा अकादमी दिल्ली के पहले उपाध्यक्ष लोकगायक हीरा सिंह राणा को फरवरी 2020 में भारत सरकार संगीत नाटक अकादमी ने अकादमी सलाहकार नियुक्त किया था। जिसके बाद जून 2020 को एक अमर गायक ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

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