नैनीताल। नैनीताल का बॉटनिकल गार्डन जैव विविधताओं से भरा है।यहां उच्च औषधियों वाले पौधों की भरमार है। साथ ही विभिन्न प्रजातियों के फूलों के साथ ही यहां तितली की करीब 1500 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। वहीं भारत की सबसे बड़ी तितली ‘गोल्डन बर्ड’ भी यहीं पाई जाती है। इस तितली के पंख 194 मिमी लंबे होते हैं। सीजन के इस पीक समय में इन दिनों रोजाना यहां 500 से अधिक पर्यटक बॉटनिकल गार्डन का दीदार करने पहुंच रहे हैं।
नैनीताल के बॉटनिकल गार्डन में तितलियों का अनोखा संसार पाया जाता है। खास बात ये है कि यहां तितलियों की ब्रीडिंग भी कराई जाती है। इस समय तितलियों का ब्रीडिंग सीजन भी चल रहा है। जिस कारण इन दिनों बड़ी संख्या में यहां रंग बिरंगी तितलियां देखने को मिलती हैं। यहां देश की सबसे बड़ी तितली गोल्डन बर्ड एक खास प्रजाति की बेल पर ही अंडे देती है। यहां तितलियों का जीवन चक्र देखा जा सकता है।
पौधों की पत्तियों में अंडे से लेकर कैटरपिलर, प्यूपा और बटरफ्लाई यहां देखने को मिल जाएंगी। वन रेंजर अजय रावत बताते हैं कि भारत की सबसे बड़ी तितली गोल्डन बर्ड विंग बॉटनिकल गार्डन में पाई जाती है जो कि केवल एस्ट्रोलोकिया प्लांट स्पीसीज में ही अंडे देती है। इसके अलावा 3 अन्य तितलियां विंड मिल, लेजर बैटविंग और कॉमन रोज भी इसी पौधे की बेल पर अंडे देती हैं। राज्य के जंगलों में यह पौधे काफी ज्यादा हैं और इन्हीं की वजह से तितलियों को संरक्षित करके गार्डन में रखा गया है।
कैक्टस गार्डन का भी किया गया विस्तार
वन बीट अधिकारी अरविंद कुमार ने बताया कि नैनीताल वन प्रभाग के डीएफओ टीआर बीजू लाल के निर्देशन पर कैक्टस गार्डन का विस्तार कर उसमें नई प्रजातियां शामिल की गई हैं, जो इन दिनों पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
बॉटनिकल गार्डन में अमेरिका, मेक्सिको,अफ्रीका,ब्राजील समेत कई अन्य देशों की प्रजाति के कैक्टस लगाए गए है। जिसमेंअमेरिकन मूल का एगेव सेंचुरी प्लांट, एगेव मेडिनेंसिस प्लांट,एगेव स्किडीगेरा, मैक्सिको मूल का एगेव विक्टोरिया (रॉयल एगेव),स्टेनोकैक्टस मल्टीकोस्टैटस (ब्रेन कैक्टस), दक्षिण अफ्रीका मूल कोटेलडेन, अफ्रीकी मूल का बीजपत्र टोमेंटोसा, क्रसुला कंजंक्टा (स्ट्रिंग ऑफ बटन्स), क्रसुला ओवाटा (जेड प्लांट), क्रसुला ओवाटा (गोलम जेड),दक्षिण-पश्चिमी टेक्सास और उत्तरी मैक्सिको मूल का ओपंटिया रूफिडा मिनिमा (दालचीनी कैक्टस), पचीफाइटम कॉम्पेक्टम समेत 50 से अधिक प्रजाति के कैक्टस लगाए गए हैं।