नैनीताल। नैनीताल के देवस्थल में विश्व की पहली फंक्शनल इंटरनेशनल लिक्विड मिरर टेलीस्कोप (आईएलएमटी) का संचालन शुरू हो गया है। एक माह के अध्ययन के बाद अंतरिक्ष से टेलीस्कोप के माध्यम से खींची गई पहली तस्वीर भी वैज्ञानिकों ने प्रस्तुत की है। वैज्ञानिकों का दावा है कि लिक्विड टेलीस्कोप की मदद से आकाश गंगा प्रतिदिन घटित होने वाली घटनाओं पर बारीकी से अध्ययन किया जा सकेगा और भविष्य में होने वाले परिवर्तन को जानने और उजागर करने में मदद मिलेगी।
मालूम हो कि वर्ष 2017 में बेल्जियम, कनाडा, पोलैंड, उज़्बेकिस्तान समेत 8 देशों की मदद से एरीज ने करीब 50 करोड़ की मदद से इंटरनेशनल लिक्विड मिरर टेलिस्कोप का प्रोजेक्ट शुरू किया था। कोरोना काल के कारण टेलिस्कोप के संचालन को लेकर देरी हुई जिसे बीते माह से शुरू कर दिया गया है। गुरुवार को एरीज सभागार में जानकारी देते हुए एरीज के निदेशक दीपांकर बनर्जी ने बताया कि टेलिस्कोप के उद्घाटन को लेकर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन भी किया जाएगा, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सीएम पुष्कर सिंह धामी व अन्य गणमान्य लोगों के मौजूद रहने की संभावना है।
बताया कि टेलिस्कोप का डिजाइन बेल्जियम की एक कंपनी ने किया है, जिसके बाद इसे एरीज की अन्य रिसर्च शाखा देवस्थल में इंस्टॉल किया गया है।
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शशि भूषण पांडे ने बताया कि इस पारंपरिक टेलिस्कोप की तुलना में इस टेलीस्कोप की मदद से अंतरिक्ष के एक बड़े एरिया को कवर करने में मदद मिलेगी। साथ ही लेंस की साफ सफाई और उसके रख रखाव में भी समय की बचत होगी। बताया कि टेलीस्कोप की मदद से आकाश की तस्वीरों का तुलनात्मक अध्ययन करने में मदद मिलेगी।
लिक्विड के रूप में प्रयोग किया गया मरकरी
आईएलएमटी टेलीस्कोप में प्रयोग होने वाले लिक्विड के रूप में मरकरी का प्रयोग किया गया है। प्रोजेक्ट पर काम कर रहीं वैज्ञानिक डॉ. कुंतल मिश्रा ने बताया कि मरकरी में 85% परावर्तन क्षमता होती है, इसलिए मिरर के तौर पर इसे प्रयोग किया गया है। इसके ऊपर 4 एमएम की माइक्रोन शीट लगाई गई है। दर्पण बनाने के लिए 4 मीटर के व्यास वाले पात्र में 50 लीटर मर्करी का प्रयोग किया गया है। एयर वेयरिंग की मदद से मर्करी को बैलेंस कर एक निश्चित वेग से घुमाया जाता है। जिसके बाद लेंस में मरकरी से बने दर्पण पर टकराकर लौटने वाले प्रकाश को कैमरे में कैद कर अध्ययन किया जाता है, इसके तहत किसी तारामंडल या समूहों पर 5 साल तक अध्ययन किया जा सकेगा।
कनाडा के प्रोफेसर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रोजेक्ट को कर रहे हैं लीड
वैज्ञानिक डॉ. वीरेंद्र यादव ने बताया कि इस पूरे प्रोजेक्ट को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कनाडा के प्रोफेसर पॉल हैक्सन लीड कर रहे हैं। इस टेलीस्कोप की ब्रह्मांड को और करीब से जानने का मौका मिलेगा।
पहली तस्वीर में मिली गैलेक्सी 9 लाख ट्रिलियन किलोमीटर दूर
प्रोजेक्ट पर काम कर रहे वैज्ञानिक डॉक्टर बृजेश कुमार ने बताया कि इसको की मदद से प्राप्त होने वाली पहली तस्वीर में एनजीसी-4274 नाम की एक बड़ी आकाशगंगा मिली है जो पृथ्वी से करीब 9 लाख ट्रिलियन किलोमीटर दूर है। बताया कि यह एक सर्वे टेलीस्कोप है। इससे प्रतिदिन 10 से 15 जीबी डाटा जनरेट होगा।