बागेश्वर: हमें किसी और ने नहीं अपनों ने ही ठगा है! घोषणा भी हो गयी, पैसे भी मिल गये, लेकिन नहीं मिला मिनी स्टेडियम…

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बागेश्वर जिले के गठन के 25 साल बाद भी आज यह जिला अपने खुद के विकास के लिए तरस रहा है। जी हां आज ही के दिन साल 1997 में जिले का निर्माण हुआ था।लेकिन ये केवल जिला निर्माण हुआ था, जिला बनने के बाद जो मूलभूत सुविधाएं और युवाओं के पक्ष में जो कार्य होने चाहिए थे वो आज भी अधूरे हैं। जिसके चलते यहां के लोग अब भी इस विभाजन को केवल सरकारी कार्रवाई तक मान रहे हैं। जिले के खेलप्रेमी युवाओं का कहना है कि राज्य की बदलती सरकारों ने जिले की भोलीभाली जनता को वोट के नाम पर ठगा है बाकी काम के नाम पर अब भी हालात जस के तस बने हुए हैं। वहीं जिले में स्टेडियम बनाने के लिए कार्यदायी संस्था को रकम मिलने के बाद भी काम नहीं होने से नाराज युवाओं सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं।

साल 2017 में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की जिले में मिनी स्टेडियम बनवाने की घोषणा ने खेल प्रेमी युवाओं को एक नई उम्मीद दी। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कपकोट के केदारेश्वर मैदान को मिनी स्टेडियम बनाने की घोषणा की थी। जिसके बाद मिनी स्टेडियम निर्माण को धनराशि स्वीकृत हुई। इस मैदान को बनाने के लिए दो करोड़ की स्वीकृति की घोषणा हुई। मगर अब भी स्टेडियम निर्माण का कार्य शुरू नहीं हो पाया है।

इससे युवाओं के हाथ निराशा लगी। केदारेश्वर मैदान लगभग एक लाख के आबादी वाले क्षेत्र के लिए राजनीतिक, सांस्कृतिक और खेलकूद के लिए एक मात्र मैदान है। मैदान का इतना खास महत्व होने के बावजूद अब भी यह उपेक्षा का शिकार बना हुआ है।

हालांकि शासन ने चयनित वन भूमि के एवज में क्षतिपूरक राशि जमा करने के लिए 38 लाख रुपये खेल विभाग को जारी कर दिए हैं। यूपी निर्माण निगम को कार्यदायी संस्था बनाया गया है। लेकिन जो हालात है वो सरकारी कामकाज के पोल खोलते दिखाई पड़ रहे हैं।

वहीं बागेश्वर जिले के युवा समाजसेवी भूपेंद्र कोरंगा का कहना है कि बागेश्वर जिला शुरुवात से ही सरकार की उपेक्षा का देश झेल रहा है। उनका कहना है कि त्रिवेंद्र सरकार ने साल 2017 में घोषणा की और इसके बाद बीते वर्ष ही कार्यदायी संस्था को इसके लिए धनराशि दी जा चुकी है। उन्होंने सभी खेल प्रेमियों और युवाओं की तरफ से जल्द स्टेडियम निर्माण पर काम किए जाने की अपील की है।

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