हल्द्वानी: दीपावली का मूल अर्थ ही दीप यानी दीपक (दीए) से शुरू होता है। आधुनिक जमाने में हर किसी ने दीयों को छोड़कर मोमबत्तियों और झालरों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है। एक तरफ जहां दीयों की मार्केट लुप्त होते जा रही है। वहीं कुछ युवा इसे पहाड़ी टच देकर नए तरीके से पेश कर रहे हैं।हम बात कर रहे हैं हल्द्वानी निवासी शिखा पांडे के प्रयासों की। ये शिखा की आधुनिक और पहाड़ से जुड़ी सोच का ही नतीजा है, जो वो आज खास तरह के दीए बनाकर लोगों के लिए प्रेरणा बन रही हैं। बता दें कि शिखा पांडे ऐपण से सजे दीए व थाली बनाकर, उनकी बिक्री कर रही हैं। आगामी त्योहार के सीजन को देखते हुए शिखा का ये आइडिया ना सिर्फ उत्तराखंड बल्कि दिल्ली तक पहुंच चुका है।हल्द्वानी देवलचौड़ निवासी शिखा पांडे फिलहाल नैनीताल डीएसबी कॉलेज में बीएससी फॉरेस्ट्री की पढ़ाई कर रही हैं। पहाड़ी होने के नाते शिखा को हमेशा से ही पहाड़ की लोक कलाओं से बेहद लगाव रहा है। पेशे से लेखक, कवियत्री और पेंट आर्टिस्ट शिखा पिछले एक साल से ऐपण कला को आगे बढ़ा रही हैं।शिखा पांडे ने बीते एक साल में कई लोगों की डिमांड पर ऐपण से जुड़ी पेंटिंग बना रही हैं। गौरतलब है कि शिखा ने पढ़ाई के साथ साथ अपने अंदर की कला से रोजगार के दरवाजे तलाशे हैं। हमेशा से ही शिखा का मानना रहा है कि लोक कला को बचाना एक इंसान के बस की बात नहीं है। इसके लिए हर किसी को आगे आकर अपना योगदान देना होगा।
बहरहाल दीपों की त्योहार दीपावली के आगमन पर शिखा पांडे ने एक नया कला और आस्था का एक नया संगम खोज निकाला है। शिखा पांडे ने आइडिया खोजा कि क्यों ना ऐपण से सजे दीए व थाली तैयार की जाए। इसी कड़ी में जब शिखा ने पहला सेट बना कर अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर डाला तो एकाएक खरीदारों की लाइन लग गई।हर कोई शिखा की इस अभिनव सोच का कायल हो गया। गौरतलब है कि चमक धमक के इस जमाने में कोई बिटिया अपनी जड़ों से जुड़ कर काम कर रही है। जो कि देखने को बहुत कम मिलता है। आपको बता दें कि शिखा को उत्तराखंड के कोने कोने से ऑर्डर आए हैं। इतना ही नहीं उन्हें दिल्ली से भी बंपर ऑर्डर मिला है।
शिखा का कहना है कि उनकी ऐपण कला को आगे बढ़ाने में हमेशा से रुचि रही है। ऐसे में दीपावली को देखते हुए ऐपण और दीयों को मिलाकर कुछ नया करने की कोशिश की है। जो लोगों को पसंद आ रहा है। उन्होंने कहा कि दीपावली पर हर कोई चाइनीज झालरों या मोमबत्ती खरीदना चाहता है। ये झालरें एक सीजन भी ढंग से चल जाएं तो गनीमत है।ऐसे में दीए और थाली एक से कहीं ज्यादा बार काम में लिए जाने वाली चीजें हैं। गौरतलब है कि इसके रेट भी हाई फाई नहीं रखे गए हैं। शिखा पांडे बताती हैं कि वह दो तरह से सेट बनाकर उनकी बिक्री कर रही हैं। 10 दीयों का सेट 50 रुपए और 10 दीए-एक थाली का सेट 350 रुपए में बिक रहा है। शिखा का कहना है कि लोक कला को और अपनी दीपावली त्योहार के मूल को समझते हुए लोगों को आगे आकर इन्हें खरीदना चाहिए। ताकि आने वाली पीढ़ी भी घऱ में इन्हें देखकर कुछ सीख सके।