भाजपा के हल्द्वानी विधानसभा क्षेत्र में ढीले चुनाव प्रचार की वजह तलाशने के अभियान में हमने तीन दिन का ब्रेक क्या लिया। पार्टी की रणनीति ही खुल कर सामने आ गई। पिछले तीन दिनों में भाजपा की ओर से शहर या उसके आसपास कुछ ऐसा होता दिखाई पड़ रहा है जो यहां के विपक्ष के लिए आखें खोल देने वाला है।दरअसल हमने सवाल उठाया था कि भाजपा या तो स्व. इंदिरा हृदयेश के गढ़ में इस बार कांग्रेस को वाक ओवर देने के मूड में है या फिर ऐन वक्त पर अपनी तुरूपचाल चलने की रणनीति पर काम कर रही है। दो आलेखों में हमने उन परिस्थितियों को समझने का प्रयास किया कि क्यों लग रहा है कि भाजपा कांग्रेस को हल्द्वानी में वाक ओवर देती दिख रही है।आपको स्मरण होगा कि दूसरे अंक के बाद हमने कहा था कि हम अगले अंक में बताएंगे कि भाजपा का तुरूप का पत्ता कौन हो सकता है। इसक बाद तीन दिन तक हम चुप रहे…हम तो चुप हो गए लेकिन राजनैतिक गलियारों में तीन दिन तक खूब खिचड़ी पकी और अंतत: सामने आ ही गया भाजपा का तुरूप का पत्ता। यानी वर्तमान में भाजपा सरकार के सबसे भारी भरकम कैबिनेट मंत्री अपने बंशीधर भगत।हमारा इशारा भगत बाबू की तरफ ही था, लेकिन हम चाहते थे कि वे खुद सामने आएं…और ऐसा ही हुआ। कल रामपुर रोड स्थित मानपुर पश्चिम क्षेत्र के अंतरगत बिजली के पोल गाढ़ने के लेकर उठे विवाद के बाद मंत्री स्वयं ग्रामीणों के साथ देर रात तक धरने पर जा बैठे।लगभग पौने घंटे तक उन्होंने धरना भी दिया। अब सवाल यह है कि बंशीधर भगत तो कालाढूंगी विधानसभा क्षेत्र में धरने पर बैठे थे, इससे यह कहां साबित होता है कि वे हल्द्वानी सीट पर जोर आजमाइश कर सकते हैं।लेकिन आप देखेंगे कि मानपुर पश्चिम इलाका दोनों विधानसभा क्षेत्रों का सीमावर्ती क्षेत्र है। यहां धरने का संदेश कालाढूंगी विधनसभा क्षेत्र में कम और हल्द्वानी क्षेत्र में ज्यादा जाता है। वर्ना भला एक कद्दावर कैबिनेट मिनिस्टर बिजली के दो पोलों और क्षेत्र में बिजली न आने की समस्या को लेकर अपनी ही सरकार होते हुए धरने पर क्यों बैठने लगा। भगत चाहते तो अधिकारियों को अपने कार्यालय, आवास या फिर बिजली विभाग के कार्यालय में ही तलब कर सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। देर रात तक उन्होंने उस इलाके में धरना दिया जहां समाचार पत्रों का प्रकाशन होता है।हालांकि की भाजपा के लोग भगत बाबू का यह आंदोलन उनका जल्दीबाजी में उठाया गया कदम मान रहे हैं। लेकिन एक मंत्री के कदम के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाना चाहता। अपनी ही पार्टी के सरकारी विभागीय अधिकारियों के खिलाफ मंत्री को धरने पर बैठना पड़ा हो ऐसा कम ही होता है। लेकिन भगत बाबू जो संदेश देना चाहते थे वह उसे दे गए।खैर अब हम आपको बताते हैं कि भगत बाबू हल्द्वानी के लिए तुरूप का पत्ता कैसे साबित हो सकते हैं। पहली बात तो यह स्मरण रखने योग्य है कि भगत बाबू के हाथों डा. इंदिरा हृदयेश एक बार चुनावी बिसात पर मात भी खा चुकी थीं। यानी भगत के लिए हल्द्वानी सीट कोई ऐसा किला नहीं जिसे वे भेद न सकें। दूसरे कालाढूंगी विधानसभा क्षेत्र के प्रतिनिधित्व वे फिलवक्त करते हैं और वहां उनके खिलाफ आवाजें यदा कदा उठती ही रहती हैं। वर्ना दो दिन पहले भगत बाबू बाकायदा प्रेस नोट जारी करके अचानक कालढूंगी विधानसभा क्षेत्र के लिए किए गए कामों को गिनाना शुरू क्यों कर देते।बात यह है कि अब तक संगठन में महत्वपूर्ण पद संभाल रहे सुरेश भट्ट की भाजपा में वापसी हो गई है, और वे भी कालाढूंगी विधानसभा क्षेत्र के ही रहने वाले हैं। उनकी वापसी के साथ से ही चर्चाएं शुरू हो चुकी हैं कि उन्हें भाजपा कालाढूंगी से टिकट देगी। यानी भगत बाबू को अपने लिए कोई और सीट तलाशनी होगी। भट्ट भाजपा के प्रदेश महामंत्री बनाए गए हैं।वे कद्दावर नेता हैं और संघ से जुड़े होने के कारण उनके लिए पार्टी में कुछ भी कठिन नहीं है। ऐसे में भगत बाबू का पलड़ा कुछ कमजोर दिखाई पड़ रहा है। लेकिन वे अपने आप कालाढूंगी का मैदान छोड़ने के मूड में नहीं हैं। पार्टी कहेगी तो उनके पास हल्द्वानी का विकल्प मौजूद रहेगा। यही वजह है कि भाजपा की ओर से हल्द्वानी में कोई भी नेता टिकट की दावेदारी करता दिखाई नहीं पड़ रहा है। भगत ने भी कल देर रात अपनी ही सरकार या यूं कहे कि मंत्री होने के नाते स्वयं अपने ही खिलाफ धरना देकर कालाढूंगी में बैठकर हल्द्वानी को साधने का प्रयास ही किया है।आने वाले दिनों में वे कुछ और भी ऐसे काम करते नजर आएंगे जो होंगे तो कालाढूंगी में और उनका प्रभाव होगा हल्द्वानी में। शायद राजनीति में इसे ही तुरूपचाल कहते हैं।
हल्द्वानी :- जानिए कौन हैं , हल्द्वानी के लिए भाजपा का “तुरुप का पत्ता”
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