उत्तरकाशी के सिलक्यारा में सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों को बाहर निकालने का अभियान मंजिल तक पहुंचने से चंद पहले कुछ ठिठक गया है। मंगलवार से बुधवार की देर रात तक अभियान तेजी से चला और श्रमिकों के बाहर निकलने की पूरे आसार नजर आ गए थे, लेकिन बुधवार की मध्य रात्रि के करीब ड्रिलिंग के दौरान 45वें मीटर पर सरिया व मेटल के टुकड़े आने के कारण पाइप आगे नहीं बढ़ पाया। ऑगर मशीन से सुरंग में धकेले जा रहे 800 एमएम व्यास के मोटे पाइप को भेदकर सरिया भीतर घुस गए। साथ ही पाइप का अगला हिस्सा भी बुरी तरह मुड़ गया, यही नहीं आगर मशीन का पुर्जा भी टूट गया। जिसके बाद एस्केप टनल बनाने के लिए औगर मशीन से की जा रही ड्रिलिंग को रोकना पड़ गया।
12वें दिन गुरुवार को दिनभर भी राहत एवं बचाव की मशीनरी तमाम रुकावटों के चलते अभियान को आगे नहीं बढ़ा सकती। शाम को ऑगर मशीन का प्लेटफार्म भी खराब हो गया। जिससे अभियान में और देर हो रही है। अब शुक्रवार को ही श्रमिकों के बाहर निकलने की उम्मीद की जा रही है।
गुरुवार को औगर को विराम देते समय ड्रिलिंग की प्रगति 46.8 मीटर थी, जबकि श्रमिकों तक एस्केप टनल (निकासी सुरंग) बनाने के लिए 60 मीटर व इससे अधिक भी ड्रिलिंग करनी पड़ सकती है।
ड्रिलिंग के दौरान औगर मशीन में कंपन्न भी पाया गया। जांच में पता चला कि औगर मशीन के संचालन के लिए जो प्लेटफार्म (सुरंग के मुख्य द्वार से 170 से 203 मीटर के बीच) बनाया गया था, वह हिल रहा है। संभवतः ड्रिलिंग के दौरान कठोर धातु के पार्ट आ जाने पर जब मशीन पर अतिरिक्त दबाव पड़ा, तब यह अपनी जगह से खिसक गया। फिलहाल, प्लेटफार्म की खामी को दूर करने का कार्य गतिमान है। माना जा रहा है कि देर रात तक प्लेटफार्म को दुरुस्त कर लिया जाएगा।
राहत एवं बचाव दलों के साथ ही सुरंग में फंसे श्रमिकों के स्वजन इस बात पर राहत जरूर महसूस कर रहे हैं कि अब फंसे श्रमिकों तक पका भोजन पहुंचने लगा है। चिकित्सकों के परामर्श पर श्रमिकों को छह इंच के लाइफ लाइन पाइप के माध्यम से रोटी-सब्जी से लेकर उबले अंडे, दलिया, खिचड़ी आदि भी भेजी जा रही है। साथ ही उन तक कपड़े, साबुन, टूथ ब्रश और टूथ पेस्ट भी भेजे जा चुके हैं। दूसरी तरफ संचार की व्यवस्था भी सुरंग के भीतर कर दिए जाने के बाद श्रमिकों से बात भी बेहद आसानी से संभव हो पा रही है।