बुधपार्क में 4 श्रम कोड के खिलाफ ऐक्टू ने मनाया मजदूरों का अखिल भारतीय काला दिवस

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4 मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं को निरस्त करने, सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण समाप्त करने, रोजगार में ठेकाकरण प्रथा समाप्त करने, भर्ती पर प्रतिबंध की नीति को रद्द करने की मांग पर आज काला दिवस मनाया गया। केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर आयोजित ‘राष्ट्रव्यापी काला दिवस’ के समर्थन में ऐक्टू ट्रेड यूनियन महासंघ से जुड़ी विभिन्न यूनियनों और भाकपा माले ने ‘काला दिवस’ मनाते हुए बुधपार्क हल्द्वानी में धरना प्रदर्शन किया।

धरने को संबोधित करते हुए ऐक्टू के प्रदेश महामंत्री के के बोरा ने कहा कि, मोदी सरकार द्वारा थोपी गई चारों श्रम संहिताओं का उद्देश्य श्रमिकों पर फिर से कम्पनियों की गुलामी की स्थितियों को संस्थागत बनाना है। ताकि कामकाजी लोगों के लिए परिभाषित कार्य स्थितियों, न्यूनतम वेतन, कार्य के घंटे और सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ संगठित होने के अधिकार, सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार और हड़ताल करने के अधिकार के लगभग सभी वैधानिक अधिकारों को समाप्त किया जा सके।

इन नई श्रम संहिताओं के कारण श्रमिकों के लिए ट्रेड यूनियनों में संगठित होना लगभग असंभव हो गया है। यह अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और भारत के संविधान के 87 और 98 प्रावधानों द्वारा प्रदान किए गए संघ और सामूहिक सौदेबाजी की स्वतंत्रता के श्रमिकों के अधिकार पर सीधा हमला है। यह “ट्रेड यूनियन-मुक्त कार्यस्थल” सुनिश्चित करने की एक ज़बरदस्त साजिश है।

भाकपा माले के नैनीताल जिला सचिव डा कैलाश पाण्डेय ने कहा कि, मोदी सरकार बड़े पूंजीपति कॉरपोरेट घरानों के सामने नतमस्तक है। इसीलिए ये नए लेबर कोड लाए गए हैं, जिससे न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा, प्रमोशन, स्थायीकरण को पूरी तरह खत्म करके मजदूर शोषण का रास्ता आसान किया जा सके। स्पष्ट है कि अपने चहेते कॉरपोरेट मित्रों को फायदा पहुंचाने के लिए ही मोदी सरकार ये काले श्रम कोड मजदूरों पर थोपना चाहती है। लेबर कोड लागू होने से सबसे अधिक मार असंगठित क्षेत्र के मजदूरों, आशा, आंगनबाड़ी, भोजनमाता जैसी महिला कामगारों, ठेका, संविदा, मानदेय, पारिश्रमिक कर्मियों पर पड़ना तय है। पहले ही आर्थिक संकट से त्रस्त असंगठित कामगारों के हिस्से पर ये लेबर कोड आपदा से कम नहीं हैं।

उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष कमला कुंजवाल ने कहा कि पहले से ही सरकार की नीतियों के चलते बंधुवा मजदूरों की श्रेणी में धकेल दी गई। आशा वर्कर्स इन लेबर कोड के लागू होने के बाद और भी मुश्किल में पड़ जाएंगी। सरकार यदि महिला श्रम का जरा भी सम्मान करती है तो उसे आशाओं को नियमित कर्मचारी का दर्जा देना चाहिए और सामाजिक सुरक्षा को संकट में डालने वाले चार लेबर कोड वापस लिए जाने चाहिए।

मजदूरों के समर्थन में पहुंचे वरिष्ठ किसान नेता और अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रदेश उपाध्यक्ष बहादुर सिंह जंगी ने कहा कि बड़े पूंजीपतियों के पक्ष में खड़ी मोदी सरकार के खिलाफ मजदूर किसानों की एकता ही इस देश को नया रास्ता दिखाएगी।

गौरतलब है कि मोदी सरकार ने 44 श्रम कानूनों को चार श्रम संहिताओं में बदल दिया है, जिनमें- मजदूरी संहिता, औद्योगिक संबंध संहिता, सामाजिक सुरक्षा संहिता, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता शामिल हैं। मोदी सरकार संगठित क्षेत्र के श्रमिकों के बड़े हिस्से को, (असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की तो बात ही छोड़िए) अधिकांश श्रम कानूनों के दायरे से बाहर करना चाहती है। यही कारण है कि पूरा ट्रेड यूनियन आंदोलन इन चार श्रम संहिताओं का कड़ा विरोध कर रहा है और उन्हें खत्म करने की मांग कर रहा है। इसीलिए प्रगतिशील लोगों के सभी वर्ग मजदूरों की इस मांग को अपना समर्थन दे रहे हैं।

इस दौरान ऐक्टू प्रदेश महामंत्री केके बोरा, माले जिला सचिव डा कैलाश पाण्डेय, उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष कमला कुंजवाल, अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रदेश उपाध्यक्ष बहादुर सिंह जंगी, सनसेरा श्रमिक संगठन के ललित जोशी, सोनू कुमार सिंह, चन्द्र सिंह, इंडियोरेंस वर्कर्स यूनियन के दीवान सिंह, माले नेता प्रकाश फुलोरिया, आशा यूनियन की हल्द्वानी नगर अध्यक्ष रिंकी जोशी, अफसर अली, रियासत अली जसवंत राम आर्य, हरीश सिंह आदि शामिल रहे।

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