हल्द्वानी: बनभूलपुरा में रेलवे अतिक्रमण पर आज सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा अहम फैसला, पढ़िए मामले की संपूर्ण जानकारी

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हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे अतिक्रमण को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट से सुप्रीम फैसला आने की संभावना है आपको संक्षेप में बनभूलपुरा रेलवे अतिक्रमण को लेकर महत्वपूर्ण जानकारी देने का प्रयास कर रहें हैं।

हल्द्वानी के बनभूलपुरा / गफूर बस्ती क्षेत्र में रेलवे की 31.87 हेक्टेयर अतिक्रमित भूमि के संबंध में “रविशंकर जोशी” द्वारा की कार्यवाही का संक्षेपः

  1. हल्द्वानी में रेल सुविधाओं का प्रारंभ लगभग सन् 1880 में हुआ जब बरेली से काठगोदाम तक 66 मील लंबी रूहेलखण्ड-कुमाऊँ रेल लाइन बिछाई गई। कालांतर में यह निजी रेल लाइन भारत सरकार के रेल मंत्रालय के अधीन हो गई एवं तभी से इस रेल लाइन के आस पास अतिक्रमण की घटनाए होने लगी जिसपर जिम्मेदार अफसरों ने कोई भी कार्यवाही नहीं करी। तुच्छ राजनैतिक लाभों के कारण स्थानीय निकाय में काबिज लोगों द्वारा बिना किसी अधिकार के उक्त अतिक्रमण को गलत तरीके से वैध माना गया एवं उक्त क्षेत्र में विभिन्न मूलभूत सुविधाएं सरकारी व्यय पर दी गई।
  2. हल्द्वानी के बनभूलपूरा / गफूर बस्ती क्षेत्र में रेलवे भूमि से उक्त अतिक्रमण को हटाने के लिए सन् 2007 में भी मा० उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय द्वारा आदेश पारित किये गए एवं लगभग 24000 वर्ग मीटर भूमि अतिक्रमण मुक्त की गई परंतु विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत एवं भ्रष्टाचार के कारण उक्त भूमि पर पुनः अतिक्रमण हो गया।
  3. सन् 2013 में अवैध खनन एवं गौला सेतु के गिरने के कारणों की जाँच के लिए याची “रविशंकर जोशी” द्वारा दायर जनहित याचिका (WPPIL-178/2013) की सुनवाई के दौरान यह विषय पुनः जीवित हुआ जब माननीय उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त कोर्ट कमिशनर की आख्या में यह आया कि उपरोक्त गौला सेतु के गिरने के मुख्य कारण, यथा अवैध खनन करने के दोषी वही लोग है जो रेलवे विभाग की भूमि पर अवैध अतिक्रमण करके बैठे हुए है तथा अवैध कारोबार चला रहे हैं। उक्त याचिका में रेल विभाग ने पक्षकार बनते ही बताया कि उक्त समस्त भूमि रेल विभाग की है तथा विभाग द्वारा अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही के लिए जिला प्रशासन/पुलिस द्वारा कभी भी सहयोग नहीं करा गया। माननीय उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 09-11-2016 को याचिका निस्तारित करते हुए रेल विभाग को आदेशित किया गया कि वह 10 सप्ताह के भीतर समस्त अतिक्रमण हटाए जिसमे वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक नैनीताल द्वारा पूर्ण सहयोग किया जाएगा।
  4. उक्त याचिका में अतिक्रमणकारियों के साथ साथ तत्कालीन प्रदेश सरकार द्वारा एक झूठा शपथ-पत्र दाखिल किया गया जिसमे कहा गया कि उपरोक्त भूमि रेल विभाग की न होकर प्रदेश सरकार की नजूल भूमि है जिसपर पट्टे एवं अन्य अधिकार दिए जा चुके हैं। माननीय न्यायालय द्वारा 10-01-2017 को प्रदेश सरकार की उक्त प्रार्थना को अस्वीकार करते हुए जिलाधिकारी एवं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक नैनीताल को अंतिम अवसर प्रदान करते हुए यह निर्देशित किया गया कि अतिक्रमण हटाने के दौरान कानून व्यवस्था का पालन करवाना उनका सर्वोच्च कर्तव्य है।
  5. उपरोक्त आदेश के विरुद्ध माननीय सर्वोच्च न्यायालय में कई विशेष अनुमति याचिकाएं दाखिल हुई जिन पर सुनवाई करने के उपरांत दिनांक 18-01-2017 के आदेश द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अतिक्रमणकारियों एवं प्रदेश सरकार को यह निर्देशित किया गया कि वह अपने व्यक्तिगत प्रार्थनापत्र उच्च न्यायालय में दिनांक 13-02-2017 तक दाखिल करें जिनका परीक्षण माननीय उच्च न्यायालय करेगा एवं इस हेतु दिनांक 13-02-2017 से 3 महीनों का समय दिया गया एवं तब तक माननीय उच्च न्यायालय के आदेश का क्रियान्वयन रोक दिया गया।
  6. उपरोक्त प्रार्थना पत्रों के दाखिल होने पर माननीय उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 06-03-2017 के आदेश से रेल विभाग को यह अवसर प्रदान किया कि वह सरकारी स्थान (अप्राधिकृत अधिभोगियों की बेदखली) अधिनियम, 1971, के तहत कार्यवाही करे, परंतु जब कोई भी कार्यवाही नहीं हुई तो याची “रविशंकर जोशी” द्वारा माननीय उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका सं0 521/2020 दायर की गई जिसमे रेल विभाग द्वारा बताया गया कि 4365 अतिक्रमणकारियों के विरुद्ध बेदखली कार्यवाही चलाई गई जिसमे अतिक्रमणकारी प्राधिकृत अधिकारी के सम्मुख एक भी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सके। इसी दौरान पुरानी जनहित याचिका WPPIL-178/2013 में जिलाधिकारी नैनीताल द्वारा एक शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया जिसमे यह बताया गया कि उपरोक्त सम्पूर्ण भूमि का सर्वे एवं सीमांकन किया गया एवं उक्त सम्पूर्ण भूमि रेल विभाग की ही है।
  7. उक्त परिस्थिति के उपरांत भी जब रेल विभाग ने अतिक्रमण नहीं हटाया तो याची “रविशंकर जोशी” द्वारा 21-03-2022 को एक नई जनहित याचिका सं० WPPIL-30/2022 माननीय उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय मे प्रस्तुत करी जिसमे यह कहा गया कि रेल विभाग सरकारी स्थान (अप्राधिकृत अधिभोगियों की बेदखली) अधिनियम, 1971 के अंतर्गत अतिक्रमण हटाने में विफल रहा है एवं रेल अधिनियम, 1989, की धारा 147 के अंतर्गत रेल विभाग को अतिक्रमण हटाने की सम्पूर्ण शक्ति है, जिसकी पुष्टि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी की गई है। अतः रेल विभाग को उक्त धारा 147 के अंतर्गत त्वरित कार्यवाही करी जानी चाहिए जिसमे वह रेल वर्क मैनुअल के अध्याय VIII-B में दिए गए निर्देशों का पालन करे।
  8. उक्त याचिका की सुनवाई के मध्य माननीय उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 18-05-2022 के आदेश द्वारा सभी प्रभावित व्यक्तियों को समाचार पत्र में प्रकाशन के माध्यम से न्यायालय में अपने तथ्य रखने के लिए आमंत्रित किया। उक्त प्रकाशन 22-05-2022 को अमर उजाला में हुआ एवं उक्त समाचार विभिन्न माध्यमों/समाचार पत्रों में 19-05-2022 से ही प्रकाशित होने लगा था।
  9. इसी दौरान माननीय उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 31-10-2022 को पुरानी जनहित याचिका 178/2013 में एक अतिक्रमणकारी द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र में यह आदेश पारित किये गए कि रेल विभाग की भूमि पर सरकारी स्थान (अप्राधिकृत अधिभोगियों की बेदखली) अधिनियम, 1971 के प्रावधान लागू नहीं होंगे।
  10. नई जनहित याचिका सं० WPPIL-30/2022 में विभिन्न अतिक्रमणकारियों द्वारा प्रार्थना पत्रों के माध्यम से अपने दस्तावेज प्रस्तुत किये जिन्हे माननीय उच्च न्यायालय द्वारा बड़ी तल्लीनता से एक एक करके सुन गया एवं उनपर उचित विचार किया गया, जिसके उपरांत यह पाया गया कि अतिक्रमणकारियों द्वारा प्रस्तुत एक भी दस्तावेज न ही पूर्ण है न ही स्वीकार्य है। अतिक्रमणकारी अपने अधिकार सिद्ध करने में विफल रहे है।
  11. उक्त निष्कर्ष पर पहुंचने के पश्चात माननीय उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 20-12-2022 को दिए गए निर्णय में अतिक्रमण हटाने के लिए रेल विभाग को विभिन्न निर्देश दिए गए जिसमे कहा गया कि अतिक्रमणकारियों को एक सप्ताह का नोटिस देते हुए रेल विभाग की भूमि को खाली करने को कहा जाय जिसके पश्चात विभाग स्वयं कार्यवाही करते हुए अतिक्रमण बलपूर्वक हटवाएगा। उक्त के अतिरिक्त विभिन्न निर्देशों से माननीय उच्च न्यायालय द्वारा जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन, गृह सचिव, रेल सुरक्षा बल के मुखिया, आदि को अतिक्रमण हटाने की मुहिम में भरसक सुरक्षा प्रदान करने को कहा गया। माननीय न्यायालय द्वारा दोषी अफसरों पर विभागीय कार्यवाही करने को भी निर्देशित किया गया है।
  12. माननीय उच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय दिनांक 20-12-2022 के विरुद्ध विभिन्न विशेष अनुमति याचिकाओं की सुनवाई माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दिनांक 05-01-2023 को हुई

दिसम्बर 2013

अवैध खनन एवं गौला सेतु के गिरने के कारणों के के संबंध में जनहित WPPIL-178/2013 दाखिल हुई।

01-09-2014

मा० न्यायालय द्वारा कोर्ट कमिशनर नियुक्त किये गए जिन्होंने 24-11-2014 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करी जिसके आधार पर रेलवे विभाग को पक्षकार बनाया गया जिसपर 16-09-2015 को मा० न्यायालय द्वारा अपना पक्ष रखने को कहा।

04-01-2016

रेलवे द्वारा माः न्यायालय के समक्ष कहा गया कि अतिक्रमण हटाने के लिए जिला प्रशासन से कई बार आग्रह किया गया परंतु प्रशासन द्वारा कोई जवाब नहीं दिया गया। रेलवे द्वारा यह भी कहा गया कि अतिक्रमण हटाने के लिए न्याय संगत कार्यवाही की जायेगी। इस पर राज्य सरकार के अधिवक्ता द्वारा कहा गया कि अतिक्रमण हटाने के लिए उचित सहयोग किया जाएगा।

09-11-2016

मा० न्यायालय ने जब यह पाया कि 04-01-2016 को रेलवे एवं राज्य सरकार द्वारा दिए गए भरोसे का पालन नहीं किया गया है तब मा० न्यायालय ने रेलवे को 10 सप्ताह के अंदर अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए और एस एस पी नैनीताल को आदेशित किया कि अतिक्रमण हटाने के लिए रेलवे को उचित सुरक्षा एवं सहयोग दिया जाए एवं अतिक्रमण न हटने की दशा में सम्बंधित अधिकारियों को न्यायालय के आदेश का पालन न करने के लिए निलंबित किया जाए।

10-01-2017

उक्त आदेश के विरुद्ध राज्य सरकार द्वारा पुनर्विचार प्रार्थना-पत्र दाखिल किया गया जिसमे मुख्य आधार यह लिया गया कि अभी तक सीमांकन नहीं हुआ है। जिसको मा० न्यायालय द्वारा 10-01-2017 के आदेश से खारिज कर दिया गया और कहा गया कि राज्य सरकार को ईमानदार व्यक्तियों का समर्थन करना चाहिए न कि बेईमान अतिक्रमणकारियों का। इसके साथ ही रेलवे द्वारा दिए गए प्रार्थना-पत्र पर गंभीर रुख लेते हुए मा० न्यायालय द्वारा आदेशित किया गया कि कानून व्यवस्था का पालन करना राज्य सरकार की सार्वभौम कर्तव्य है एवं जिला एवं पुलिस प्रशासन को अंतिम अवसर देते हुए रेलवे को यह अधिकार दिया कि वह केन्द्रीय अर्धसैनिक बलों की मांग कर सकता है। साथ ही अतिक्रमण हटाने के आदेश को पालन करने के लिए मुख्य सचिव एवं पुलिस महानिदेशक का व्यक्तिगत उत्तरदायित्व भी तय किया गया।

18-01-2017

उपरोक्त आदेशों के विरुद्ध विभिन्न अतिक्रमणकारी एवं राज्य सरकार ने मा० उच्चतम न्यायालय का रुख किया जिस पर मा० न्यायालय द्वारा मात्र 3 महीने की मोहलत देते हुए पक्षकारों को उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय में अपने प्रार्थना पत्र एवं अन्य दस्तावेज प्रस्तुत करने को कहा।

06-03-2017

मा० उच्च न्यायालय द्वारा उपरोक्त प्रार्थना-पत्रों की सुनवाई के दौरान रेलवे को पी पी ऐक्ट के अंतर्गत कार्यवाही करने का मार्ग भी खुला रखा।

22-11-2019

मा० उच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न पुनर्विचार प्रार्थना-पत्रों को निस्तारित करते हुए रेलवे के एस्टेट ऑफिसर को 31-03-2020 तक किसी भी हालत में सारे मामले निस्तारित करने को आदेशित किया। साथ ही याची को एक नई याचिका दाखिल करने का अधिकार भी दिया। साथ ही याची को एक नई याचिका दाखिल करने का अधिकार भी दिया।

24-12-2020

उपरोक्त आदेश के बावजूद लगभग 4 वर्षों तक कोई कार्यवाही न होने पर याची द्वारा एक अवमानना याचिका दाखिल की गई जिसपर नोटिस जारी होने पर रेलवे अधिकारियों द्वारा शपथ-पत्रों द्वारा यह बताया गया कि पी पी ऐक्ट के तहत कार्यवाही में एस्टेट ऑफिसर द्वारा समस्त 4365 मामलों में से 4356 मामलों की सुनवाई पूरी कर उन्हें विभाग के पक्ष में निस्तारित कर लिया गया है एवं अन्य 9 मामले मा० उच्च न्यायालय में लंबित याचिकाओं के कारण विचाराधीन है।

24-03-2021

रेलवे द्वारा मुख्य याचिका सं० WPPIL-178/2013 मे समय बढ़ाने हेतु दायर प्रार्थना-पत्र की सुनवाई के दौरान सीमांकन को लेकर मा० उच्च न्यायालय द्वारा तलब जिला प्रशासन के अधिकारियों द्वारा स्थिति स्पष्ट नहीं करने पर कोर्ट कमिश्नर द्वारा बताया गया कि रेलवे की भूमि का सर्वे हुआ है परंतु सीमांकन नहीं हुआ जिसपर रेलवे द्वारा कहा गया कि सर्वे एवं सीमांकन दोनों हुए है जिसकी रिपोर्ट राजस्व विभाग के पास है। मा० न्यायालय द्वारा राज्य सरकार को 07-04-2021 तक उक्त रिपोर्ट पेश करने को कहा गया।

16-03-2022

उपरोक्त के अनुपालन में जिलाधिकारी नैनीताल द्वारा उक्त रिपोर्ट अनुपालन शपथ-पत्र के माध्यम से न्यायालय में दाखिल की गई जिसको रिकार्ड में लिया गया एवं याची को पुनः नई याचिका दाखिल करने की अनुमति दी गई। उक्त अनुपालन शपथ-पत्र वर्तमान जिलाधिकारी श्री धीराज गर्ज्याल द्वारा दाखिल किया गया जिसमे वह स्पष्ट उल्लेख है कि रेलवे द्वारा दिनांक 22-03-2017 से 01-04-2017 तक जो सर्वे एवं सीमांकन कार्य किया गया उसमे जिला प्रशासन की भी उचित भागीदारी थी जिसमे जिला प्रशासन द्वारा राजस्व अधिकारियों एवं पुलिसकर्मियों की उचित सहायता सुनिश्चित की गई।

21-03-2022

याची द्वारा मा० उच्च न्यायालय में नई जनहित याचिका सं० WPPIL-30/2022 दाखिल की गई जिसमे मा० न्यायालय द्वारा सार्वजनिक नोटिस के माध्यम से सभी संबंधित पक्षों को अपने दावे के अनुरूप दस्तावेज प्रस्तुत करने को आमंत्रित किया।

01-11-2022

मा० न्यायालय द्वारा सभी पक्षों को उचित मौका देकर लगभग 4 दिन की सुनवाई के उपरांत अपना निर्णय सुरक्षित रखा गया। सभी पक्षकारों के दावों एवं उनके दस्तावेजों का उचित अवलोकन किया गया एवं सभी को इच्छा के अनुसार समय दिया गया।

20-12-2022

मा० उच्च न्यायालय द्वारा सभी पहलुओ पर गहन विचार करते हुए 176 पृष्ठों के आदेश द्वारा रेलवे की भूमि से अतिक्रमणकारियों को हटाने के निर्देश दिए गए जिसमे जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन, गृह सचिव, रेल सुरक्षा बल के मुखिया आदि को अतिक्रमण हटाने की मुहिम में भरसक सुरक्षा प्रदान करने को कहा गया। साथ ही दोषी अफसरों पर विभागीय कार्यवाही करने के भी निर्देश दिए गए है।

05-01-2023

उपरोक्त आदेश के विरुद्ध अतिक्रमणकारियों की याचिका पर मा० उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हुई जिसमे प्रदेश सरकार के अधिवक्ता द्वारा प्रदेश सरकार का रुख स्पष्ट नहीं किया गया जिस कारण मा० उच्चतम न्यायालय द्वारा मा० उच्च न्यायालय के निर्देशों पर अंतरिम रोक लगाते हुए 07-02-2023 नियत की गई है।

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